सोमवार, 26 दिसंबर 2016

माँ - पिता




माँ कदमों में ठहराव है देती 
पिता मन को नई उड़ान देते
माँ पथरीली राह  में दूब बनती
पिता से होकर धूप है थमती
माँ पहली आहट से हैं जानती
पिता की धड़कन आहट बनती
ये ठहराव ,ये उड़ान क्यों अटकती
हर आहट क्यों धड़कन सहमाती
अब न तो दूब है ,न ही धूप का साया
तलवों तले छाले हैं ,सर पर झुलसन
न ही कोई ओर है न ही कोई छोर
कितनी लम्बी लगती सांसों की डोर ...... निवेदिता

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ख़ूब मेरी प्यारी छोटी बहन!! कभी ऐसा ही कुछ भाई-बहन के लिये भी लिखो! सौभाग्यवती भव!!

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  2. जीवन की धुरी होते हैं माता पिता ... उनका होना जीवन को नए आयाम देता है ... बहुत संवेदनशील रचना ...

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  3. हमारे अंतर्मन को छू गयी यह मार्मिक रचना.

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