मंगलवार, 20 दिसंबर 2016



पापा .... 
ये एक शब्द है 
या एक रिश्ता 
या सच कहूँ तो है 
मेरी आत्मा की 
दृढ़ता का प्रतीक
कभी दुलराया नहीं
जतलाया भी नहीं
पर जानती हूँ
मैं भी थी आपकी
अनबोली आस्था की
आपके विश्वास का
प्रतीक चिन्ह
मैंने भी कभी नहीं कहा
पर .....
जानते हैं
आपके आँखे मूँदते ही
मैंने अनुभव किया
चटक चांदनी में
झुलसाती लू के थपेड़े
आज बस एक ही बात
समझना जानना चाहती हूँ
ऐसी भी क्या जल्दी थी
यहाँ से जा कर
धूप का ताप सहलाने की .... निवेदिता

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