" चिराग तले अंधेरा " इस उक्ति का प्रयोग हम बड़े ही नामालुम तरीके से अनायास ही यदाकदा करते करते रहते हैं। इस का अर्थ भी हम अपनी सुविधानुसार ले लेते हैं । कभी इसके द्वारा हम किसी पर अपनी खुन्नस निकल लेते हैं ,तो कभी उपहास के लिए और कभी कुछ प्रतिक्रिया न देने के प्रयास में भी ऐसा बोल दिया जाता है ।
कल मैंने फेसबुक पर कुछ ऐवें ही टाइप स्टेटस में लिखा "शक तो कई दिनों से था ,पर विश्वास आज हुआ कि चिराग तले ही अँधेरा होता है " … इस कथन को कई दोस्तों ने लाइक भी कर दिया और रोचक टिप्पणी भी की … अनु ने कहा भी कि कारण बता दूँ अन्यथा गलत इंटरप्रिटेशन हो जाएगा … शिखा ने भी अच्छा सुझाव दिया फ्लोटिंग चिराग जलाने का … पाबला जी ने जानना चाहा कि कहीं बिजली तो नहीं चली गयी … एक दूसरी मित्र ने इसको एक पत्नी की व्यथा बताई … अनु के कहने पर मैंने यही कहा कि देखते हैं औरों का इंटरप्रिटेशन भी पता चलेगा … कुछ और रोचक टिप्पणियाँ मिलीं और इनबॉक्स के विचार तो एकदम बेबाक थे ही …
जिस सोच के साथ मैंने ये लिखा था , वो इन सबसे बहुत अलग थी । जब भी इस उक्ति के बारे में सोचती थी मुझे ये सोच सर्वथा नकारात्मक प्रतीत होती थी । चिराग और अँधेरा दोनों ही अलग व्यक्तित्व सरीखे हैं । एक में सब कुछ कितना पारदर्शी बन जाता है ,जबकि दूसरे में कुछ दिखाई ही नहीं पड़ता । दोनों को एक साथ रखना तो लगता है एक टूटे हुए बरतन को अनवरत बहती जलधारा से भरने का प्रयास किया जा रहा है , जिसमें यथास्थिति बनी रहने का भ्रम होता है परन्तु मिलता कुछ भी नहीं है ।
इस उक्ति को अगर हम ये सोच कर देखें कि चिराग तले अँधेरा नहीं है अपितु अँधेरे पर चिराग रखा गया है । हम जब भी अपने अंदर की नकारात्मकता को बदलने का एक सार्थक प्रयास करते हैं तब एक सकारात्मक ऊर्जा के सान्निध्य की अनुभूति होती है ।
रौशनी चाहे वाह्य जगत की हो अथवा हमारे अंतर्मन की ,वो होती है अँधेरे की पूरक । ये दोनों ही एक दूसरे में व्याप्त शून्य को अपने साहचर्य से परिपूरित करते हैं । जैसे दो भिन्न सोच के व्यक्तित्व वाले सबसे अच्छे सहभागी होते हैं ,क्योंकि किसी भी विचार के हर पहलू की विवेचना दो सर्वथा भिन्न तरीके से हो जाती है और इसमें त्रुटियों की सम्भावना लगभग शून्य रह जाती है ।
चिराग के नीचे के अन्धकार ,चिराग के ऊपर के प्रकाश को देखता एक अवगुंठनवती नवोढ़ा सदृश लगता है जो एकदम बिदास अल्हड़ बाला को देख रहा हो ,दोनों ही अपने-अपने दायरे में अपने होने का आभास देते से …
मेरे अपने विचार में तो चिराग तले का अन्धकार बड़ा रहस्यमयी और सकारात्मक सहभागिता लिया होता है और बड़ा ही रचनात्मक भी …… निवेदिता
मैंने इसी लिए कुछ नहीं कहा ... हम लोगो की आदत बन गई ... हर बात का अर्थ अपने अनुसार लगाने की ... लिखने वाले ने क्या सोच कर लिखा है उस तक जाने का प्रयास शायद ही कोई करता हो |
जवाब देंहटाएंन लिखना इसका समाधान नहीं है ,अपना मत भी संतुलित रूप से बताया जा सकता है ... शुभकामनाएं !
हटाएंसूरज भी तो इक जलता हुआ चिराग है, उसके इर्द-गिर्द अंधेरा नहीं होता। अंधेरा तभी होता है जब सूरज नहीं होता।
जवाब देंहटाएंजी देवेन्द्र जी , आप सही कह रहे हैं ,पर एक अंधेरा तो सूरज अपने साथ भी लिये चलता है .... जब उसकी किरणें प्रखर होती हैं तब भी तो आँखें उसकी चमक के अंधेरे में कुछ भी देख नहीं पाती ...
हटाएंoupsssss........... sorry.
जवाब देंहटाएंऐसा क्या...... मस्ती भी तो हम अपने दोस्तों से ही करते हैं :)
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (4-1-2014) "क्यों मौन मानवता" : चर्चा मंच : चर्चा अंक : 1482 पर होगी.
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है.
सादर...!
चर्चा - मंच में सम्मिलित करने के लिये धन्यवाद !
हटाएंमैंने एक पोस्ट भी लिखी थी इस विषय पर... और कल ब्लॉग़-बुलेटिन पर चर्चा करते हुए मैंने यह कहा भी था कि आमतौर पर फेसबुक पर कहे गये स्टैटस का अर्थ कितना भी सीरियस क्यों न हो, तुरत प्रतिक्रिया देने के चक्कर में लोग अर्थ का अनर्थ या सीरियस बात का मज़ाक बना देते हैं..
जवाब देंहटाएंसच है कि अन्धेरा उजाला जैसा कुछ भी नहीं.. एक मूर्तिकार ने एक पत्थर की चट्टान से बहुत सुन्दर मूर्ति बनाई तो लोगों ने उसकी बड़ी प्रशंसा की, जबकि उसका उत्तर था - मैंने कोई कमाल नहीं किया.. बस उस पत्थर में से फालतू के टुकड़े निकाल दिए और वो सुन्दर मूर्ति जो वहाँ थी ही, प्रकट हो गई..
अन्धेरा चिराग तले नहीं होता.. चिराग की रोशनी के साथ साथ चलता है.. एक ओट में गया तो दूसरा उसकी जगह ले लेता है!!
बहुत अच्छा विश्लेषण!!
जी भैया ,त्वरित प्रतिक्रिया देने के लोभ में अकसर दु:खद संदेश भी लाइक कर जाते हैं .... सादर !
हटाएंअच्छा विश्लेषण...!
जवाब देंहटाएंनव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाए...!
RECENT POST -: नये साल का पहला दिन.
बेहतरीन अभिवयक्ति.....
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति को आज की बुलेटिन हिंदी ब्लॉग्गिंग और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंआभार आपका :)
हटाएंगुणों को शरीर ढोता है, कभी गुण भी शरीर ढोते हैं एक चिराग़ है, दूसरा अँधेरा है।
जवाब देंहटाएंदोनों ही एक दूसरे के पूरक है दी... मेरी समझ से जहां चिराग होगा वहाँ भी अंधेरा तो होता ही है और जहां अंधेरा होगा वहाँ रोशनी तो होती ही है जैसे रात में भी चाँद तारे चमकते ही हैं...
जवाब देंहटाएंExtremely well written and well presented .. kudos to u
जवाब देंहटाएंplz visit :
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