मंगलवार, 16 जुलाई 2013

उम्र हो कम ग़म नहीं .......


उम्र हो कम ग़म नहीं 
श्वांस थके ग़म नहीं 
क़दम रुके ग़म नहीं 
पलकें मुंदी ग़म नहीं 
धडकनें रुकी ग़म नहीं
 पर इतनी कम ......
  ...... 
उम्र हो कम पर 
इतनी भी कम 
झटके से छूटती 
जैसे श्वांसों की कच्ची डोर
हाथों से हाथ छूटे 
ऐसी बेबस ,बेसबब 
बेरहम ज़िन्दगी तो नहीं
 .......
हाथों की लकीरों से बसे 
धडकनों से सजे सपने
श्वांस - श्वांस पुकारती 
तुम्हारे होने के एहसास 
पर अमृत कलश छलकाती
ये तरसती आँखें बस 
तुम्हारी पायल की रुनझुन 
ढूंढ़ - ढूंढ़  बरस जाती  ...... 
         
                                -निवेदिता 

10 टिप्‍पणियां:

  1. बेहद सुन्दर प्रस्तुतीकरण ....!!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज बुधवार (17-07-2013) को में” उफ़ ये बारिश और पुरसूकून जिंदगी ..........बुधवारीय चर्चा १३७५ !! चर्चा मंच पर भी होगी!
    सादर...!

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  2. बहुत सुन्दर..मेरी नई पोस्ट "कदम धरती पर ,मन में आसमान हो"पर आप का स्वागत है..

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  3. किसी के होने का एहसास सदा रहे तो उम्र कम कहां होती है ...

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  4. आपकी मनोस्थिति समझ सकती हूँ....
    पायल की रुनझुन तो सदा याद आयेगी...और यादों के आसरे उम्र भी कट जायेगी....

    अपना ख़याल रखना.
    सस्नेह
    अनु

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  5. जितना जियो, उतना आनन्दपूर्ण हो, भले ही कम हो।

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