सजा रही अलबेला सपना
मन आशा से दमक रहा।
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राह बहुत हमने थी देखी
आन विराजो रघुनन्दन
फूल चमेली बेला भाये
लाये अगरु धूप चन्दन
मंगल बेला अब है आई
खुश हो घर गमक रहा है।
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रात अमावस की काली थी
निशि शशि ने आस सजाई
राह प्रकाशित करनी चाही
चूनर तारों भर लाई
सुमन मेघ बरसाने आये
बन साक्षी अब फलक रहा।
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कन्धे पर हैं धनुष सजाये
ओढ़ रखा है पीताम्बर
सुन्दर छवि है जग भरमाये
नाच रहे धरती अम्बर
आज महोत्सव अवध मनाये
दीवाली सा चमक रहा।
निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'
लखनऊ
सुंदर पंक्तियाँ। शुभ दीपावली।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कल्पना ,बहुत सुन्दर भाव और कविता
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