"आंखों" के झरोखों से बाहर की दुनिया और "मन" के झरोखे से अपने अंदर की दुनिया देखती हूँ। बस और कुछ नहीं ।
तुम्हारे दर से आ गईं हूँ ले चुभते काँटे की सौगात !
टीसते छालों का मुँह खोल रही हूँ काँटों से उकेर रही हूँ जज़्बात !
रोक लो अपनी इस अदा को ये नन्हे नन्हे काँटे कर रहे हैं बात !
आओ थाम ले एक दूजे का हाथ बन न जायें कैक्टस की बारात ! #निवी
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