मंगलवार, 28 अप्रैल 2020

ख़्वाहिश और ख़्वाब

ख़्वाहिश और ख़्वाब

ये "ख्वाहिश" रही कि वो "ख़्वाब" ही न रह जाते
हर्फ़ दर हर्फ़ हक़ीकत बन यादे सहरा में बस जाते

मेरे ख़्वाब कभी यूँ  ख़्वाहिश तुम्हारी बन जाते
तुम ख़्वाहिश बन ख़्वाब में मेरे बसेरा बन जाते

ये खलल ये ख़लिश, यही तो इक याद है मेरी
परेशां न  होते तुम तो ये ख्वाब  कहाँ उमगते
                     .... निवेदिताश्रीवास्तव 'निवी'

1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (29-04-2020) को   "रोटियों से बस्तियाँ आबाद हैं"  (चर्चा अंक-3686)     पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
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    कोरोना को घर में लॉकडाउन होकर ही हराया जा सकता है इसलिए आप सब लोग अपने और अपनों के लिए घर में ही रहें। आशा की जाती है कि अगले सप्ताह से कोरोना मुक्त जिलों में लॉकडाउन खत्म हो सकता है।  
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
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    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

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