रविवार, 26 अगस्त 2018

एक वसीयत मेरी भी ....... निवेदिता



एक सपना मेरा भी  ......
समुंदर के किनारे पर
खूब सारी सीपियाँ बटोरूँ
समंदर की लहरों की फुहार 
चेहरे पर ओस की बूंदों सा छुएं
पहाड़ की चोटियों को 
बादलों से ढंके देखूँ
बादलों की साँस भरूँ
फूलों के अथाह रंग हों
खुशबू से मदहोश हो जाऊँ
किताबों से घिरे इस घने से
जंगल में बस गुम हो जाऊँ
एक वसीयत मेरी भी ....... निवेदिता


चित्र साभार गूगल से 

10 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (28-08-2018) को "आया भादौ मास" (चर्चा अंक-3077) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बेहद सुंदर रचना निवेदिता जी👌

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  3. वाह सुंदर मनोगत अभिलाषा व्यक्त करती अनुपम अभिव्यक्ति

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