"आंखों" के झरोखों से बाहर की दुनिया और "मन" के झरोखे से अपने अंदर की दुनिया देखती हूँ। बस और कुछ नहीं ।
सोमवार, 27 सितंबर 2010
बेटियों का दिन
सितम्बर माह के अन्तिम रविवार को बेटियो का दिन मनाया जाता है,परंतु आज के इस माहौल में इस दिन की सार्थकता पर ही अनेक प्र्शनचिन्ह लगे दिखते हैं ।बेटियां सहज भाव से निडर हो कर रास्तों में नहीं चल पाती हैं । ये वही रास्ते हैं ,जो उनको सफ़लता के सबसे ऊंचे स्थानों पर पहुंच कर स्वभिमान से सार्थक जीवन बिता सकने के अवसर देते हैं। इसलिये इस दिन को तभी मनायें , जब हम उनको एक सहज परिवेश दे जहां वो द्रिढ्तापूर्वक कदम बढा सकें । अगर ये न हो पाया तो बेटियों की अस्मिता इस दिन ही मान पायेगी।
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