लघुकथा : एक संवाद कुछ यूँ ही सा
पार्क में चबूतरे पर खड़े - खड़े थक जाने पर गांधी जी ने सोचा कि किसी के भी सुबह की सैर पर आने से पहले थोड़ा टहल लिया जाये । अब इस उम्र में एक जगह पर खड़े - खड़े हाथ पैर भी तो अकड़ जाते हैं । लाठी पकड़े टहलने को उद्द्यत हुए ही थे कि किसी को आते देख ठिठक कर अपनी मूर्तिवाली पुरावस्था में पहुँचने ही वाले थे कि किलक पड़े ,"अरे शास्त्री तुम यहाँ क्या कर रहे हो ? "
शास्त्री जी ," क्या करूँ बापू मेरे लिये बहुत कम चबूतरे रखे सबने । अब जगह की कमी जब ज्यादा ही शरीर टेढ़ा करने लगती है तो मैं ऐसे ही टहल कर शरीर की अकड़न दूर करने की कोशिश करता हूँ । हूँ भी तो इतना छोटा सा कि कोई देखता ही नहीं ।"
गाँधी जी ,"हम्म्म्म ... पर सोचा क्यों नहीं कभी कि ऐसा क्यों हुआ ... कुछ तो मुझमें होगा जो तुममें नहीं है । "
शास्त्री जी ," सोचना क्या ,जबकि मैं कारण भी जानता हूँ ।"
गाँधी जी ,"कारण जानते हो ! बताओ क्या बात है ... किसी को कुछ कहना हो तो निःसंकोच बोलो मैं साथ में चलता हूँ ,तुम्हारा काम हो जायेगा ।"
शास्त्री जी ,"रहम बापू ... रहम ... आप तो रहने ही दो । "
गाँधी जी ,"ऐसे क्यों कह रहे हो ... तुम खुद ही सोचो और इतिहास के पन्ने पलट कर देखो कि मेरे कहने भर से ही कितने काम हो गये हैं । "
शास्त्री जी ,"हाँ अंतर तो है हम दोनों में ,वो कोई छोटा सा अंतर नहीं अपितु बहुत बड़ा अंतर है । "
गाँधी जी ,"मतलब क्या है तुम्हारा ? "
शास्त्री जी , "आपके हाथ की छड़ी सबको दिख जाती है ,परन्तु मेरे जुड़े हुए हाथ दुर्बलता की निशानी समझ कर अनदेखे ही रह जाते हैं । आपकी मृत्यु पर भी आज तक सियासत और बहस होती है ,जबकि मेरा अंत तो आज भी रहस्य ही है ।"
गाँधी जी नजरें नीची किये कुछ सोचने लगे ,"परन्तु मेरे किसी भी काम का उद्देश्य यह तो नहीं ही था । "
"छोड़िये भी बापू ... आप भी क्या बातें ले कर बैठ गए हैं । आप तो अब और भी ताकतवर हो गये हैं । आप तो रंग - बिरंगे कागज़ के नोटों पर छप कर जेब मे पहुँच कर एकाध चीज़ों को छोड़ कर ,कुछ भी खरीदने की क्षमता बढ़ा देते हो ",शास्त्री जी आगे बढ़ने को उद्यत हुए ।
"पर तुम्हारा जय जवान जय किसान तो आज भी बोला जाता है ",गाँधी जी जल्दी से बोल पड़े ।
हाँ ! जिन्दा है वो नारा आज भी ,परन्तु सिर्फ बातों में ... आज का सच तो ये है कि एक सीमा पर मर कर शहीद कहलाता है और दूसरा गरीबी और भुखमरी से हार कर फन्दे में खुद को लटका देता है और यही है आज के जय जवान जय किसान का सच ",विवश आक्रोश में हताश से शास्त्री जी के क़दम आगे बढ़ते चले गये ।
... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'