"ओफ्फो क्या करती हो ? बर्तन माँजते समय ध्यान कहाँ रहता है तुम्हारा ? इस तरह से रोज प्लेटें टूटती रहेंगी तो कैसे काम चलेगा ," कहती वसुधा रसोई में आई तो देखा कि रेखा सिर झुकाए सहमी सी खड़ी थी । वह उससे कुछ बोलती उसके पहले ही उसकी निगाह बालकनी के कोने में खड़े रसोइये रामू पर पड़ गयी ,जो सशंकित निगाहों से इधर - उधर देखता हुआ चुपके - चुपके रसोई में उसकी और रेखा की बातें सुनने का प्रयास कर रहा था ।
"रेखा ! ध्यान दे कर आराम से काम करो ,"बोलती हुई बालकनी का दरवाज़ा बन्द करती हुई ,सामने ही लॉबी में आ कर बैठ गयी और रामू का हिसाब जोड़ने लगी ।
... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'
सुन्दर और सार्थक लघुकथा।
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