#काश_अब_भी_तुम_साथ_मेरे_होते !
तप्त हुआ मरुथल है जलता
रुक्ष हुआ इक सागर है बहता
क्या बात करूँ उन बातों की
जिनमें तेरा हर अक्स है सजता !
यादों की बूँदे ओस सी हैं सजती
बिनमौसम बरखा सी अँखियाँ हैं बहती
एक बार ठिठक के देखा तो होता
ये विरहन तेरा पथ है निरखती !
चाहत की क्या मुक्तामाल बनाऊँ
रंग अरु दियों से कैसे घर सजाऊँ
हर साँस अटक कर कहती है
पीड़ा अंतर्मन की कैसे भुलाऊँ !
कुछ मैं कहती कुछ तुम कहते
राह के काँटे हम - तुम चुनते
जीना इतना न दुष्कर होता
काश अब भी तुम साथ मेरे होते !
... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'
सार्थक सृजन।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 29.10.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंवाह।