संवाद : खुशी और दुःख का
धुंध भरी सड़क पर टहलते हुए दो रेखाओं ने एक दूजे को देखा और बस देखती ही रह गईं । एक सी होते हुए भी कितनी अलग लग रही थीं । एक मानो उगती खिलखिलाती रश्मिरथी ,तो दूसरी निशा की डूबती सिसकी सी लग रही थी । दोनों के रास्ते अब एक ही थे और बहुत देर की ख़ामोशी से भी मन घबरा कर चीत्कार कर ,कुछ भी बोलना चाहता है । बस उन दोनों की ख़ामोशी भी आपस में बात करने को अंकुरित होने लगी ।
सखे ! तुम इतनी ख़ामोशी ,इतना सूनापन लिये क्यों चल रहे हो ? कुछ स्वर के द्वार खुलें तो कुछ किरणें तुम्हारे पास भी खिल जाएंगी ।
हम्म्म्म ....
एक बार बोल कर तो देखो
क्या बोलूँ ! मैंने तो तुमसे नही पूछा न कि तुम इतनी चमकदार क्यों हो ? इतनी रौशनी से तुम्हारी आँखें चौंधियाती क्यों नहीं ?
तुम बेशक़ मत पूछो ,पर पता नहीं क्यों तुमको ये बताने का मन कर रहा है कि इस रौशनी से कभी - कभी मेरी आँखें भी भागना चाहती हैं ,परन्तु सिर्फ तभी जब इसमें झूठी और दिखने में चमकीली पर चुभती किरणें मिल जाती हैं ।
जब इतनी परेशानी होती है तो छोड़ क्यों नहीं देती उस चमक को ?
नहीं छोड़ सकती क्योंकि मैं खुशी हूँ न ... और खुशी की चमक तभी ज्यादा खिलती है, जब वो औरों के बारे में भी सोचती है ।
ह्म्म्म ...
अब तो तुम भी कुछ अपने बारे में बताओ न ...
समझ नहीं आ रहा है कि क्या बताऊँ ... जानती हो मुझसे तो सब पीछा ही छुड़ाना चाहते हैं ।
ऐसा क्यों ?
क्योंकि मैं दुःख हूँ न ... एक घनीभूत पीड़ा ...
ओह !!! पर सुनो तुम भी तो ज़िंदगी का एक अभिन्न अंग हो और जैसे साँसें आ कर जाती भी हैं ऐसे ही तुम भी तो आ कर चले जाते हो ।
हाँ ... पर इस सत्य को ,पीड़ा की गहनता में कोई याद नहीं रख पाता और छटपटाता है ,जो मुझे बहुत पीड़ा देता है ।
तुम मेरी बात सुनो ... सबसे पहले तो तुमको खुद को ही बदलना होगा और तिमिर के घटाटोप से निकल कर ढ़लता या उगता हुआ सूर्य बनना होगा ,एक आनेवाली रोशनी के संदेश की ऊर्जा से भरपूर ।
ह्म्म्म ...
और सुनो इस ज़िंदगी की राह पर हम एक दूजे का हाथ थामे चलेंगे और ये भी समझाएंगे कि एक पैर पर तो कूद ही सकते हैं परन्तु चलने के लिये दोनों पैरों का साथ स्वीकार करना पड़ता है ,फिर चाहे वो नकली पैर हो या बैसाखी का सहारा । बस ऐसे ही खुशी और दुःख ज़िंदगी के अनिवार्य रंग हैं ।
दोनों एक दूजे के हाथों में हाथ डाले ज़िंदगी की रपटीली डगर पर आगे बढ़ चले ,क्योंकि दोनों की मंज़िल भी एक ही थी और यात्री भी ... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी
आदरणीया निवेदिता जी, नमस्ते !👏! सुख और दुःख दोनों ही जीवन के अभिन्न पहलू हैं। सुंदर विवेचन कहानी के फॉर्मेट में।
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सादर!--ब्रजेन्द्रनाथ