सोमवार, 2 नवंबर 2020

लम्हों की सौगात ...

 बिखरे लम्हों के हर मोती चुन लायेंगे

लरजती साँसों के धागे से माला बनायेंगे

थकना तो सिर्फ कुछ लम्हों की सौगात है 

ऐ ज़िंदगी तुझको क्या जीना सिखायें हम

यादों के दिये में आशा के दीप जलायेंगे हम

कहती #निवी  बिखरे ज़िंदगी जितना चाहे

प्यार की आस से इसको जी के दिखायेंगे 

                ... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'

3 टिप्‍पणियां:

  1. वाह क्या खूब लिखा है आपने। बहुत सुंदर।

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (04-11-2020) को   "चाँद ! तुम सो रहे हो ? "  (चर्चा अंक- 3875)   पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    -- सुहागिनों के पर्व करवाचौथ की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

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