धूप दिखते ही , दिवी छत पर कपड़े सुखाने आयी ही थी कि उसकी निगाह सड़क की तरफ गयी । स्कूल यूनिफॉर्म में एक कम उम्र की बच्ची डरी - सहमी सी बार - बार पीछे देखती चली आ रही थी । उसकी कच्ची उम्र और डर से सशंकित दिवी ने छत से ही उसको आवाज़ लगाई ,"क्या बात है ? इतनी परेशान और डरी हुई क्यों हो ? "
उसकी बात पर अपनी उखड़ी साँसों को थामने का प्रयास करती बच्ची ने जवाब देना ही चाहा था कि ,पास आती ऑटो की आवाज़ से घबरा कर वह भागती हुई दिवी के घर के सामने तक आ गयी ,"आंटी ,मैं इस ऑटो पर स्कूल जाने के लिये बैठी थी परन्तु ये अजीब सी बातें करने लगा और ऑटो रोक भी नहीं रहा था । अभी ट्रैफिक की वजह से धीमा हुआ तो मैं उतर गई ,पर ये अभी भी पीछे ही लगा है ।"
तब तक ऑटोवाला भी वहाँ रुक कर उस बच्ची का हाथ पकड़ खींचने का प्रयास करने लगा । दिवी पर जैसे शक्तिरूपा माँ चण्डी आ गयी हों ,उसने छत से एक गमला उठा कर ऑटोवाले पर फेंका और चीख पड़ी ,"घबराना बिल्कुल नहीं । वो ईंटा उठा कर मार इसको ,मैं आई ।"
ऑटोवाला गमले के प्रहार से लड़खड़ा गया और उसको आते देख वहाँ से भागता बना । हाथ में हॉकी स्टिक थामे दिवी ने नीचे आ कर बच्ची को साहस बंधाया और कहा ,"किसी दूसरे से उम्मीद बाद में करो ,पहले खुद ही विरोध करना सीखो। हर जगह कोई मिले जरूरी नहीं है ,पर हाँ ! हर जगह तुम खुद को अपने साथ हमेशा पाओगी ।"
दिवी उस बच्ची को हाथ में ईंट थामे दृढ़ कदमों से आगे बढ़ता देखती रही ,मानो एक चिंगारी खिल उठी हो ।
... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (18-10-2020) को "शारदेय नवरात्र की हार्दिक शुभकामनाएँ" (चर्चा अंक-3858) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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बहुत सुन्दर
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