दीवारें खींचती हैं कुछ रेखायें
इधर सोना है तो उधर खाना खाना
इस तरफ चप्पलें रखना
पर हाँ उस तरफ बिल्कुल न ले जाना
चलो इस छोटी रेखा के इधर पूजा कर लूँगी मैं
तुम उस बड़ीवाली रेखा के पार दोस्तों को बैठाना
सपनों सी होती हैं ये दीवारें
कभी अपनों सा समेट लेतीं हैं
कभी बेगानों सा दूर ढ़केल देतीं हैं
ये दीवारें सच बड़ी दिलफ़रेब होती हैं
..... निवेदिता
दीवारों के क़ायदे ....
जवाब देंहटाएंसुन्दर।
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, सौ सुनार की एक लौहार की “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंआभार आपका ......
हटाएंउम्दा प्रस्तुति
हटाएंआभार आपका ......
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