जब जब ठोकरों से तराशी जाती हूँ
ये विश्वास और भी पल्लवित होता है
हाँ ! मैं हूँ हीरा ... एक अनमोल पत्थर
पर जानते हो एक बात
इस हीरे में छुपा हुआ है एक दिल
और वो धड़कता है
सहमता है और लरजता भी
तुम्हारी बातों से भी
उसकी चाहत जानना चाहोगे
वो तो बस बेसबब धड़कना चाहता है ...... निवेदिता
ये विश्वास और भी पल्लवित होता है
हाँ ! मैं हूँ हीरा ... एक अनमोल पत्थर
पर जानते हो एक बात
इस हीरे में छुपा हुआ है एक दिल
और वो धड़कता है
सहमता है और लरजता भी
तुम्हारी बातों से भी
उसकी चाहत जानना चाहोगे
वो तो बस बेसबब धड़कना चाहता है ...... निवेदिता
एक अनमोल हीरा जो धड़कना भी जानता है.. जैसे आप����
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (17-09-2017) को
जवाब देंहटाएं"चलना कभी न वक्र" (चर्चा अंक 2730)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर रचना
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