पूरा हो जाये एक चक्र ......
अपलक निहार रही हूँ
एक बाती है नन्ही सी
कभी दायें तो कभी बाएं
लड़खड़ा कर भी
जलती ही जा रही है
उसके कदमों को थामे है
एक काँप जाती सी लौ
शायद अगले ही पल
दम घुट जाये और
सांसों से आजाद हो जाए
वो डगमगाती नन्ही सी बाती
और पूरा हो जाये एक चक्र ...... निवेदिता
दिनांक 26/09/2017 को...
जवाब देंहटाएंआप की रचना का लिंक होगा...
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी इस चर्चा में सादर आमंत्रित हैं...
आभार !!!
हटाएंसुंदर ।
जवाब देंहटाएंदिया तो झूमे है, रोये है बाती.....
जवाब देंहटाएंशायद अगले ही पल
जवाब देंहटाएंदम घुट जाये और
सांसों से आजाद हो जाए
वो डगमगाती नन्ही सी बाती
और पूरा हो जाये एक चक्र .....
Wahhh। बहुत महीन और ज़हीन रचनात्मकता। सुंदर
बाती के माध्यम से क्षण भंगुर जीवन की बहुत गहन अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंये आशा की लो है डगमगाए पर बुझेगी नहीं ... चक्र पूरा होगा ...
जवाब देंहटाएंआभार !!!
जवाब देंहटाएंबाती ही तो जलकर प्रकाश फैलाती है... दीप वही रहता है,जली बाती को निकालकर बदल दिया जाता है । अंतिम साँस तक लड़ती है बाती अँधेरे से.....
जवाब देंहटाएं