ये चाहतें
बड़ी अजीब ही
नहीं
अजीब - अजीब सी
कभी भी
कहीं भी
यूँ ही सी
सरगोशियाँ करने
लग जाती हैं
अब देखो न
कैसी चाहत
उभर आयी है
चाहती हूँ
तुम्हारी कुछ भी
नहीं बनना ...
क्यों ?????
अरे ...
अभी तो
बहुत कुछ
और हाँ
बहुत सारे हैं
तुम्हारे पास
पर
जब कभी
ये सब कहीं
भटक जाएँ
ज़िंदगी की
उलझनों में
तब भी
कभी भी
तुमको
नहीं खलेगा
अकेलापन
तब
मैं हूंगी न
तुम्हारी
कुछ भी नहीं ...... निवेदिता
अरे आप तो सब कुछ हो.......
जवाब देंहटाएं:-)
सस्नेह
अनु
अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
ये चाहतें भी न .....
जवाब देंहटाएंवाह क्या समपर्ण है :) :)
मेरे दिमाग में आज डाउनलोड होते विचार
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसमर्पण भाव कि सुन्दर रचना...
:-)
सुंदर समर्पित भाव .....
जवाब देंहटाएंआभार आपका !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना!
जवाब देंहटाएंइन चाहतों को रोके रखना भी आसां नहीं होता ... छलक उठेंगी अपने आप ही ...
जवाब देंहटाएंयही तो खासियत होती है "कुछ भी नहीं" की , कि सब कुछ होती है हमेशा :)
जवाब देंहटाएंकुछ भी नहीं ??? अरे सब कुछ.... आपसे ज्यादा तो कुछ भी नहीं.... :)
जवाब देंहटाएंखुबसूरत अभिवयक्ति.....
जवाब देंहटाएंYe KUCHH BHI NAHIN HONA hi to SAB KUCHH hai.. Sundar abhivyakti!!
जवाब देंहटाएंYe KUCHH BHI NAHIN HONA hi to SAB KUCHH hai.. Sundar abhivyakti!!
जवाब देंहटाएंदेखिये जी , यहाँ इंकार में इकरार कैसे मुस्किया रहा है , अभिये तनी देर में हंसेगा भी .
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