बड़ी अजीब होती हैं ये आती - जाते साँसे .....… जब आती हैं तब हँसा जातीं हैं और जब जाती हैं या कहूँ थमती हैं तब बहुत कुछ बिखेर जाती हैं .....… जब एक नये जीवन की शुरुआत होती है तब माता - पिता अपनी एक-एक साँसों की एक सीढ़ी सी बना नये आने वाले सदस्य की राह निहारते हैं ....… न जाने कितने मासूम से सपनें और कितनी चाहतें उन पलकों तले आस भरती हैं .....… एक - एक लम्हा एक - एक कदम वो नन्ही उँगलियों को थामे अपेक्षाकृत दृढ़ हाथ कभी लम्बा तो कभी छोटा सफर तय करते हैं ....
अचानक ही जैसे पूरी दुनिया ही बदल जाती है ..... कमजोर दिखती नन्ही उंगलियाँ दृढ़ होती जाती हैं और दृढ़ हाथों में क्रमश: शिथिलता पसरने लगती है .....… उम्र का वो पड़ाव वृद्ध होते माता - पिता के लिए बहुत कष्टप्रद होता है ...… एक अजीब सा खालीपन आ जाता है ....… लगता है कि करने को कुछ बचा ही नहीं .....… ये मन:स्थिति मन के साथ ही उनके शरीर को भी तोड़ देती है .....
उम्र के इस पड़ाव पर उनको अपने हर रिश्ते , चाहे वो निकट के हों या दूर के , की चाह रहती है और कमी भी खलती है ..... अगर ईश्वर बहुत कृपालु होता है , तब उस समय उन का साथ देने को उनके बच्चे अपनी सुरक्षा का कवच बनाये उनके साथ रहते हैं ....
समय एक बार फिर करवट लेता है और शारीरिक शिथिलता के साथ ही विभिन्न रोग भी प्रभावी होने लगते हैं ...... अब बच्चे अपनी एक - एक साँस की माला सी बना कर अपने माता-पिता को बचा लेना चाहते हैं .....… रोग को प्रभावी होते देख बच्चों की छटपटाहट ,उनकी व्याकुलता सबको बेबसी का एहसास करा जाती है .......
बहुत पीड़ा देता है किसी अपने को ऐसी स्थिति में देखना , बस यही लगता है जैसे हम अपने अपनों की अंतिम साँस की राह देख रहें हो ..... अंतिम साँस के थमने पर भी कभी किसी के इंतज़ार का बहाना बनाते हैं तो कभी विभिन्न कर्मकांडों की तैयारी का बहाना बना कर उस जाते हुए रिश्ते को , अपने अस्तित्व के उस अंश के एहसास को कुछ और देर थामे रखना चाहते हैं ...... कभी किसी सामान का बहाना बना कर तो कभी कुछ - पूछते पूछते भूल जाने का आभास देते हुए उस स्थान पर आना , बस एक - एक निगाह उस अपने को अपनी यादों में ,अपनी निगाहों में सहेज लेना की लिप्सा ही तो रहती है .....
जानती हूँ ये असम्भव है , तब भी यही कामना जगती है कि किसी को भी किसी अपने को ऐसे हर पल तिल - तिल कर जाते हुए न देखना पड़े ...... निवेदिता
किसी भी अपने का अपने आप से दूर होना बेहद पीड़ा दायक होता है दी...आपने तो हमेशा के लिए जाने की बात की मुझे तो घर आए हुए किसी अपने का उसके घर लौटना भी बहुत अखरता है। सच इस पीड़ा को शब्दों में पिरो कर ब्यान नहीं किया जा सकता।
जवाब देंहटाएंसचमुच बहुत दुःख देता है जब हम कुछ कर नहीं पाते उनके लिए !
जवाब देंहटाएंसच में यह पीड़ा शब्दों में बयां करना मुश्किल है .....
जवाब देंहटाएंक्या कहें??? ... :(
जवाब देंहटाएंपीड़ा को शब्दों में बयाँ करना मुश्किल है ... ये ऐसा एहसास होता है जिसको सहना ही होता है बस ...
जवाब देंहटाएंबहुत मर्मस्पर्शी....
जवाब देंहटाएंमेरी अम्मा अपने जीवन भर लोगों की मदद करती रहीं.. स्कूल, हस्पताल, शादी ब्याह.. किसी के लिये भी भागती रहती थीं.. पिछले महीने उन्हें ब्रेन हेमरेज हुआ और बाईं ओर हल्का लकवे का अटैक आया.. मेरे मुँह से एक ही प्रार्थना निकली कि परमात्मा जो सारे जीवन इतना सक्रिय रहा हो उसे शरीर त्यागने के समय भी अपने पैरों पर खड़े रहने की ताकत देना.. और यकीन मानिए उनके आत्मविश्वास ने उन्हें दस दिनों में चलना सिखा दिया और वो पिछले हफ्ते कृष्-३ देख आयीं, सबके साथ!!
जवाब देंहटाएंअम्मा स्वस्थ बनी रहें ...चश्मेबद्दूर !!!
हटाएंआभार आपका :)
जवाब देंहटाएंरीतियों का दुखद पक्ष, उत्थान जितना मर्यादित हो, अवसान भी उतना गरिमामय।
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