अजीब सा सफर है ये ज़िंदगी का भी ...... बस पहली सांस से आख़री सांस तक का ...... देखा जाए तो ये दूरी बड़ी छोटी सी है ..... बस पहली से आखरी सांस तक की , बड़ी ही नामालूम सी अजनबी की तरह गुजर जाती है बगैर कुछ बताये ..... बस दे जाती है कुछ चाहे और कुछ अनचाहे से रिश्तों के ताने - बाने .. ये ऐसे रिश्ते होते हैं जो एक लम्हे को जिंदगी की सबसे बड़ी हकीकत लगते हैं तो अगले ही लम्हे में सबसे बड़ी कड़वाहट से भरे झूठ ...... उन रिश्तों की चीख पुकार को सुन कर लगता है ,जैसे उस जाने वाले के साथ ही उनकी भी ये आने वाली आख़री साँसे हैं ..... क्या सच में कभी ऐसा मुमकिन हो पाया है ..... हकीकत में तो शरीर के जाने के साथ ही, जिंदगी तुरंत ही शुरू हो जाती है ....... कभी घर की शुद्धि के नाम पर की जाने वाले साफ़ - सफ़ाई के नाम पर तो कभी इंतज़ामात के नाम पर ....... कभी यादगार और रवायतों का नाम दे कर लेने - देने वाली सौगातों के नाम पर तो कभी व्यंजनों की एक लम्बी सी सूची के नाम पर .....
एक और भी अजीब सी हकीकत आती है ... जिन कदमों में इतना साहस कभी नहीं होता की वो उस दहलीज़ की तरफ ख्यालों में भी आ सकें और हसरत से देखता है ,वही उस घर की हर दर -ओ - दीवार को अपनी हर सांस में भर लेता है और बाद में अपनी हसरत को अजीब सी हिकारत से देखता है ...
ताउम्र जिस शान शौकत से इंसान जीता है ,अपने तमाम शौक पूरे करता है ...... बस पलकों के बंद होते ही दूसरों का मोहताज़ हो जाता है ,जैसे लगता है की कब कोई आये और उसको अंतिम स्नान कराये ..... ताउम्र कितनी भी रंगीनियों में जीता रहा हो पर अब ....... उसकी तमाम नापसंदगी की बावजूद , कोरा बेरंग कफ़न पहनाया जाता है ....... बेशक उसको फूलों से एलर्जी रही हो पर फूलों की चादर ओढ़ाई ही जायेगी ........ और सबसे बड़ी बात जो बहुत बड़ी नाइंसाफी ( ? ) की है वो ये कि ये तमाम काम वही शख्स करता है जो उसको और जिसको वो सख्त नापसंद थे और कभीकभार तो उस सांस के आखरी रह जाने का कारण भी वही शख्स ही रहता है ....
सच बड़ी ही अजीब से होते हैं हालात सांसों के अटकने से लेकर थमने तक के ..... कई की कड़वी सच्चाइयों से रूबरू करवाते हैं तो कई अनचाहे इंसानों के अनचाहे रहने पर सवालिया निशान भी लगाते हैं ....... आख़री सांस बड़ी ही बेरहम होती है ....... बहुतो के बड़े ही मासूम से लगते अस्तित्व को झकझोर कर रख देती है और बहुतों की निगाह में बेबाकी से बेनक़ाब भी कर जाती है .............. निवेदिता
अस्तित्व को झकझोर कर रख देती है........very good thoughts :)
जवाब देंहटाएंआपने तो जीवन सार को ही शब्दों में पिरो कर रख दिया । पिछले दिनों जाने कितने ही कठिन पलों से रूबरू होता रहा हूं ...........
जवाब देंहटाएंक्या कहूँ अजय जी ,शायद इसी को जीवन कहते हैं और ऐसे कठिन पल ही जीना सिखाते हैं ..... शुभकामनाएं !
हटाएंजीवन के सभी सच सरल नहीं हुआ करते ....
जवाब देंहटाएंnice post computer and internet ki nayi jankaari tips and trick ke liye dhekhe www.hinditechtrick.blogspot.com
जवाब देंहटाएंदी... क्या बात है सब ठीक तो है ? वैसे अपने जो लिखा शायद ज़िंदगी की वही रीत है...
जवाब देंहटाएंहाँ पल्लवी ,सब तुम लोगों के स्नेह से ठीक है बस मन बावरा कहीं कुछ देख कर विचलित हो जाता है .... स्नेह !
हटाएंमन की ना थमने वाली सोच का परिचय ...बहुत खूब
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर, बहुत बढिया
जवाब देंहटाएं:-(
जवाब देंहटाएंसच्चाई है...मगर मुझे नहीं देखनी :-( नहीं जाननी.....
सस्नेह
अनु