अनहत नाद से
अनसुने स्वर
बसेरा बनाये
हमारे बीच
ये भी घण्टी से
झंकृत हो
बोल सकते हैं
बस हमको
बनना होगा
खामोश पड़ी
घण्टी के
मन के द्वार
खोलते और
बोलते स्वर !
-निवेदिता
अनसुने स्वर
बसेरा बनाये
हमारे बीच
ये भी घण्टी से
झंकृत हो
बोल सकते हैं
बस हमको
बनना होगा
खामोश पड़ी
घण्टी के
मन के द्वार
खोलते और
बोलते स्वर !
-निवेदिता
प्लानिंग तो हो गयी अब अमल कब शुरु होगा ? :)
जवाब देंहटाएंमन के द्वार खोलिए और सुनने दीजिये मन की आवाज़ .... अच्छी प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंहर के डमरू से उत्पन्न इस स्पंदन को सुनने के लिए मन के द्वार ही खोलने होगे .
जवाब देंहटाएंहर ध्वनि सुनने की शक्ति बढ़ती जा रही है।
जवाब देंहटाएंखामोश पड़ी घंटी के मन के द्वार ...
जवाब देंहटाएंबिम्ब ने भी मन मोहा !
खामोश पड़ी
जवाब देंहटाएंघण्टी के
मन के द्वार
खोलते और
बोलते स्वर !
अनहद ले जाता निश्चय ही ...उस पार .....
भक्ति और शक्ति का सम्मिश्रण ....
सुंदर विचार ...
शुभकामनायें ....
बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी.बेह्तरीन अभिव्यक्ति .शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंहोते हैं अनुगूंज के भी स्वर :-)
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर कविता आभार निवेदिता जी |
जवाब देंहटाएंसमय हो तो अपने समय के महान कवि हरिवंश राय बच्चन जी को पढने का कष्ट करें
www.sunaharikalamse.blogspot.com
एक छोटी से कहानी वो यथार्थ कह रही है कि अगर अपने सिद्धांत और रूचि के रस्ते पर अकेले चलाना है तो अकेले ही चलाना होगा क्योंकि इसा समाज और जाती की भीड़ में अपनी सी कुछ ही मिलेंगी लेकिन अगर शक्ति का अहसास अपने में एक ही हैं
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंद्वार तो मन के खोने होते हैं कुछ भी सुनने को ... उसे पहचान देने को ...
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