शनिवार, 11 नवंबर 2023

अलबेला सपना

सजा रही अलबेला सपना 

मन आशा से दमक रहा। 

*

राह बहुत हमने थी देखी   

आन विराजो रघुनन्दन     

फूल चमेली बेला भाये       

लाये अगरु धूप चन्दन        

मंगल बेला अब है आई      

खुश हो घर गमक रहा है। 

*

रात अमावस की काली थी  

निशि शशि ने आस सजाई     

राह प्रकाशित करनी चाही  

चूनर तारों भर लाई       

सुमन मेघ बरसाने आये   

बन साक्षी अब फलक रहा। 

*

कन्धे पर हैं धनुष सजाये    

ओढ़ रखा है पीताम्बर       

सुन्दर छवि है जग भरमाये  

नाच रहे धरती अम्बर    

आज महोत्सव अवध मनाये  

दीवाली सा चमक रहा।

निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'

लखनऊ

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