परिधान में सिर्फ़ ओढ़े अथवा सिले हुए वस्त्र ही नहीं आते हैं, अपितु व्यक्ति के शरीर पर धारण की गई प्रत्येक वस्तु आती है, फिर चाहें वो हाथ में लिया हुआ पर्स हो अथवा सिर पर रखी हुई टोपी, पाँवों में पहने हुए जूते हों या इसी कलाई अथवा जेब में लगाई हुई घड़ी हो। संक्षेप में कहें तो पूरे व्यक्तित्व को परिभाषित करता है उसका परिधान।
परिधान को समय एवं परिस्थिति के अनुकूल होना चाहिए। औपचारिक एवं अनौपचारिक कार्यक्रमों के परिधान अलग होते हैं, जैसे विद्यार्थियों के दीक्षांत समारोह के गाउन और हैट उसी कार्यक्रम के मंच पर ही अच्छे लगेंगे, चुनावी रैली में नहीं। ऊँची हील्स के सैण्डल अथवा जूते शहरों की पार्टी या विभिन्न सम्मिलन में उचित हो सकते हैं परन्तु वही ग्रामीण परिवेश अथवा पहाड़ों पर असुविधाजनक होंगे और हँसी का पात्र भी बना सकते हैं।
परिधान का चयन परिस्थिति एवं अपनी शारीरिक स्थिति के अनुसार ही करना चाहिए क्योंकि यह कत्तई आवश्यक नहीं है कि जो दूसरे पर अच्छा लग रहा है वह स्वयं पर भी अच्छा ही लगेगा और सुविधाजनक होगा। वस्त्र हों अथवा उस की एक्सेसरीज उनको कैरी करने का गरिमापूर्ण तरीका भी व्यक्तित्व को निखार देता है।
व्यक्ति का परिधान, उसके व्यक्तित्व को परिभाषित करता है। देखने से ही आभास हो जाता है कि उस व्यक्ति का परिवेश क्या और कैसा है, साथ ही यह भी परिलक्षित होता है कि वह परिस्थितियों के प्रति कितना संवेदनशील है।
निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'
लखनऊ
बिलकुल सही
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार
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