परिवार सिर्फ़ और सिर्फ़ परिवार होता है, चाहे वो एकल हो या संयुक्त, क्योंकि अपनी सोच के अनुसार ही इन दोनों ही तरह के परिवारों में सब सदस्यों की, रिश्तों की मान्यता रखते हैं। कभी पति , पत्नी और उनके बच्चे ही एकल परिवार कहे जाते हैं, जबकि वो भी अपने पड़ोसियों और दोस्तों को भी पारिवारिक सदस्यों जितना ही सम्मान देते हैं और संयुक्त परिवार जैसे ही अलग-अलग घरों में रहते हैं, तो कभी दूसरी या तीसरी पीढ़ी के सभी सदस्यों के साथ रहते हुए भी वो स्नेहभाव या कह लूँ कि नेह का जुड़ाव नहीं रहता जो कि संयुक्त परिवार की सबसे बड़ी विशेषता और पहचान रहती है। मुझे तो लगता है कि सदस्य कम हों या ज्यादा, बस जिस परिवार में नेहबन्धन बना रहे वही संयुक्त परिवार है।
मुझको परिवार में बिखराव के मूल कारण सिर्फ़ दो लगते हैं ... पहला अहं की भावना और दूसरी चुप्पी। विवाद को टालने के लिए चुप रह कर सही समय पर कारण न बताने से बात समाप्त नहीं होती है, बस कुछ समय के लिए टल जाती है।
आजकल के अभिभावक बेटे के साथ साथ ही बेटी की शिक्षा के लिए सजग रहते हैं और दोनों को ही जीवन में उन्नति करने के लिए प्रेरित करते हैं और बच्चे हर क्षेत्र में स्वयं को प्रमाणित भी करते हैं। यही प्रतिभाशाली बच्चे, अपने जैसे ही योग्य एवं सामाजिक रूप से समकक्ष जीवनसाथी के साथ जब जीवन के वास्तविक रूप और उसकी दैनन्दिन की चुनौतियों से परिचित होते हैं, तब स्वयं का परिश्रम अधिक दिखाई देता है और अपने हमसफ़र से उनकी अपेक्षाएं बढ़ती जाती हैं कि वो उनको समझे, जबकि अपने कार्यक्षेत्र में दूसरा भी लगभग उतना ही अथवा उससे अधिक परिश्रम भी करता है। यह अपेक्षा एवं अवहेलना, उन के जीवन में शनि की साढ़ेसाती बन कर क्रमशः पसरने लगता है और कभी चुप्पी तो कभी तीखे बोलों की चिटकन गूँजते हुए प्रस्तर प्रहार करती परिवार को बिखेर देती है।
विवाद न हो और बात वहीं समाप्त हो जाये सोच कर, दूसरे पक्ष की चुप्पी भी इन बिखरती दीवारों को और भी बिखरा देती है। किसी भी गलत्त लगती बात का मुखर और शालीन विरोध मन को भी शान्त कर देता है और सही अर्थों में बात को समाप्त भी, अन्यथा एक ज्वालामुखी मन ही मन धधकता रह जाते है और उस का विस्फोट रिश्ते में कोई भी उम्मीद नहीं छोड़ता।
रिश्तों के बिखरने के मूल में अहं भाव ही विस्फोटक होता है। वहम तो अहं का सिर्फ पोषण ही करता है।
निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'
लखनऊ
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