अवगुंठन की ओट में ,गोरी खड़ी लजाये
दूर देश प्रीतम गए ,ना जाने कब आये !
हथेली हिना हँसने लगी ,चूड़ी खनक जाये
पाँव महावर खिल गये ,पायल गुनगुन गाये !
ऋतु बसन्त की आ गयी ,मदन चलाये तीर
अँखियों में सपने सजे , भूल गयी सब पीर !
कली मोगरे की खिली ,केशों में जा सँवरी
सम्मुख प्रिय को देखती ,सकुचाई कुँवरी !
साजन को देख सामने ,सोचती नयन झुकाय
सृंगार अब मैं क्या करूँ ,सज रही पी को पाय ! #निवी
सज रही पी को पिय...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया दोहे!
*पाय...
हटाएंसाजन को देख सामने ,सोचती नयन झुकाय
जवाब देंहटाएंसृंगार अब मैं क्या करूँ ,सज रही पी को पाय !
लाजवाब दोहे !!
वाह वाह, बहुत सुंदर, बेहतरीन 👌👍💐
जवाब देंहटाएं