सोचती हूँ मौन रहूँ
शायद मेरे शब्दों से
कहीं अधिक बोलती है
मेरी खामोश सी खामोशी !
ये सब
शायद कुछ ऐसा ही है
जैसे गुलाब की सुगंध
फूल में न होकर
काँटों में से बरस रही हो !
जैसे
ये सतरंगी से रंग
इन्द्रधनुष में नही
आसमान के मन से ही
रच - बस के छलके हों !
जैसे
ये नयनों की नदिया
झरनों सी नही खिलखिलाती
एक गुमसुम झील सी
समेटे हैं अतल गहराइयों को ! #निवी
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंगहन भाव पिरोए हैं।
जवाब देंहटाएंवाह ..... बहुत सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 26-08-2021को चर्चा – 4,168 में दिया गया है।
जवाब देंहटाएंआपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
धन्यवाद सहित
दिलबागसिंह विर्क
सही कहा मौन ऐसा ही है हृदयस्पर्शी सृजन।
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत सुंदर प्रस्तुति।
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