सोमवार, 2 अगस्त 2021

समय

 जीवन की पहली साँस ,या कहूँ कि जीव तत्व प्राप्त हो सकने के एहसास ( अपने प्रथम निवास ,माँ के गर्भ में ) से ले कर आज तक प्रत्येक क़दम पर ,प्रतिदिन ही नित नवीन रुप में गुरु के होने का अनुभव ज़िंदगी करवाती रही है । कभी सृष्टा के रूप में साँस लेना सिखा कर तो कभी दूध का पहली घूँट पिला कर जीने का एहसास दिलातीं माँ के रूप में । कभी सुरक्षा का एहसास दिलाते पिता के रूप में ,तो कभी जीवन को जिन्दादिली से जीने के तरीके सिखाते अग्रजों के रूप में । शिक्षा ज्ञान देते शिक्षक के रूप में भी ज़िंदगी सामने आई तो आध्यात्मिक ज्ञान देते गुरु के रूप में । सहअस्तित्व का ज्ञान सिखाया मित्र और जीवन साथी ने । ज़िंदगी के किसी क़दम पर न तो हारना है और न ही नई चीजें सीखने से डरना है यह ज्ञान मैंने अपने बच्चों से पाया । जो गलतियाँ अथवा गलत व्यवहार ,स्वयं के साथ हो चुका हो उसको रिले रेस की तरह उसी रिश्ते या व्यक्ति के साथ आगे न बढ़ाना भी ज़िंदगी से सीख रही हूँ ।


उपर्युक्त बातों और उनको सिखाने वाले गुरुओं के प्रति मन प्रत्येक पल नमन करता है ,आभारी रहता है ... परन्तु सोचती हूँ कि ये गुरु मुझको मिले कैसे और क्यों ! जीवन में घटित उन्ही घटनाओं पर मन कभी एकदम शांत प्रतिक्रिया देता है तो कभी कहीं अनदेखे से आक्रोश की बाढ़ आ जाती है । कुछ तो कारण अथवा कारक होगा इसके भी पीछे । तभी कहीं मन में ख़याल आता है कि इनके पीछे सिर्फ़ और सिर्फ़ समय की माया रहती है । वही समय निश्चित करता है और साथ ही निर्देशित भी कि हम ज़िंदगी को किस रूप में देख सकते हैं ,देखते हैं और देखना चाहिए । समयानुसार ही हमारे विचार परिपक्व होते हैं और परिस्थितियों को देखने का नज़रिया भी । यह समय ही है जो अपनी चाल बदल देता है तो ,बहुत सारे तथाकथित अपनों का सच सामने आ जाता है । यह भी सिर्फ़ और सिर्फ़ समय ही है जो सिखा जाता है कि हम कुछ नहीं हैं और बहुत कुछ बन सकते हैं ।

व्यक्तिगत रुप से कहूँ तो आज मैं जो भी हूँ और जैसी भी हूँ ,उसके लिए मैं अपने सबसे बड़े गुरु "समय" को नमन करती हूँ कि बेशक़ मेरे जीवन में वह बहुत सारे झंझावात ले कर आया , परन्तु उसने कभी एक पल को भी मेरा हाथ और साथ नहीं छोड़ा ... और उन तमाम तूफ़ानों से निकाल भी लाया । #निवी

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 03 अगस्त 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. समय को स्वीकार करने से सब समझ आने लगता है। सुन्दर लेख निवेदिताजी।

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