लघुकथा : प्यार
सहमी सी अनुभा घर में घुसते ही विदिशा से लिपट गई ,"माँ ! प्यार करना कोई बुरी बात होती है क्या ? नेहा को उसके घरवालों ने बाहर निकलने से मना कर दिया है कि वो किसी से प्यार करती है ।"
विदिशा ने उसको अपने पास बैठा लिया ,"बेटे ! सबसे पहली बात तो तुम ये समझ लो कि कोई भी बात या मनोभाव गलत नहीं होता ,गलत होती है उसके पीछे की नीयत ।"
"माँ ! मैं समझी नहीं ... "
"देखो हम इंसानों की क्या बात ,जिनको हम पूजते हैं ,वो देव भी प्रेम करते हैं । प्रेम की पराकाष्ठा है सीता का राम से प्रेम जिन्होंने कितने कष्ट सहे पर राम का साथ सदैव दिया ,विशेषकर विपरीत परिस्थितियों में । सहभागिता और साख्यभाव वाला प्रेम राधा कृष्ण का है । अपमान न सहन कर पाने पर जब सती हवन कुंड में जल गयीं तब भोलेनाथ उनके अपमान पर क्रोधित होकर ताण्डव कर सम्पूर्ण सृष्टि का ही विनाश करने लगे थे ।"
"पर माँ !इसमें तो कुछ गलत है ही नहीं ... फिर नेहा को ..."
"सही कह रही हो बिट्टू ... ये प्रेम का विशुद्ध रूप है । कहीं कोई दुराव छुपाव नहीं है ,यदि है तो सिर्फ एक दूसरे के प्रति सम्मान । नेहा या किसी का भी प्रेम करना गलत नहीं है ,गलत सिर्फ यही है कि उसने छुपाने की कोशिश की । "
"माँ ! इसमें बताने जैसा क्या है ... "
"तुमलोगों ने अभी सिर्फ परिवार का निस्वार्थ प्रेम ही देखा है । दुनिया में धोखेबाजों की भी कमी नहीं ,जिनको तुम लोग सम्भवतः समझ नहीं पाओगे । यदि बड़ों को बता दोगे तो वो तुमको गलत व्यक्ति के झूठे प्रेम से बचा लेंगे ।"
"मैं समझी नहीं माँ ... "
"प्रेम का मूल तत्व समर्पण ,साख्य और सुरक्षा देती भावना है ,जब ये समझ जाओगी तब इससे खूबसूरत कुछ है ही नहीं ... ये समझते ही किसी बन्धन की कभी जरूरत ही नहीं रह जायेगी ।"
.... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'
सहमी सी अनुभा घर में घुसते ही विदिशा से लिपट गई ,"माँ ! प्यार करना कोई बुरी बात होती है क्या ? नेहा को उसके घरवालों ने बाहर निकलने से मना कर दिया है कि वो किसी से प्यार करती है ।"
विदिशा ने उसको अपने पास बैठा लिया ,"बेटे ! सबसे पहली बात तो तुम ये समझ लो कि कोई भी बात या मनोभाव गलत नहीं होता ,गलत होती है उसके पीछे की नीयत ।"
"माँ ! मैं समझी नहीं ... "
"देखो हम इंसानों की क्या बात ,जिनको हम पूजते हैं ,वो देव भी प्रेम करते हैं । प्रेम की पराकाष्ठा है सीता का राम से प्रेम जिन्होंने कितने कष्ट सहे पर राम का साथ सदैव दिया ,विशेषकर विपरीत परिस्थितियों में । सहभागिता और साख्यभाव वाला प्रेम राधा कृष्ण का है । अपमान न सहन कर पाने पर जब सती हवन कुंड में जल गयीं तब भोलेनाथ उनके अपमान पर क्रोधित होकर ताण्डव कर सम्पूर्ण सृष्टि का ही विनाश करने लगे थे ।"
"पर माँ !इसमें तो कुछ गलत है ही नहीं ... फिर नेहा को ..."
"सही कह रही हो बिट्टू ... ये प्रेम का विशुद्ध रूप है । कहीं कोई दुराव छुपाव नहीं है ,यदि है तो सिर्फ एक दूसरे के प्रति सम्मान । नेहा या किसी का भी प्रेम करना गलत नहीं है ,गलत सिर्फ यही है कि उसने छुपाने की कोशिश की । "
"माँ ! इसमें बताने जैसा क्या है ... "
"तुमलोगों ने अभी सिर्फ परिवार का निस्वार्थ प्रेम ही देखा है । दुनिया में धोखेबाजों की भी कमी नहीं ,जिनको तुम लोग सम्भवतः समझ नहीं पाओगे । यदि बड़ों को बता दोगे तो वो तुमको गलत व्यक्ति के झूठे प्रेम से बचा लेंगे ।"
"मैं समझी नहीं माँ ... "
"प्रेम का मूल तत्व समर्पण ,साख्य और सुरक्षा देती भावना है ,जब ये समझ जाओगी तब इससे खूबसूरत कुछ है ही नहीं ... ये समझते ही किसी बन्धन की कभी जरूरत ही नहीं रह जायेगी ।"
.... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'
बहुत सुंदर युवा पीढी की मित्र बनकर ही उन्हें मार्ग दर्शन दिया जाता जा सकता है।
जवाब देंहटाएंसुलझी हुई प्रेरक कहानी।
सादर।
प्रेरक सुंदर लघुकथा
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंहम्म...
जवाब देंहटाएंप्रेम में छलावे की सम्भावना सबसे ज्यादा है.
इसको बड़ों से छुपाना गलत है.
बड़ों को भी प्रेम से प्रेम हो तब ये बात आसान हो जाएगी.
सुंदर लघु कथा.
नयी रचना- एक भी दुकां नहीं थोड़े से कर्जे के लिए