कैसे कह दूँ कि मैं परेशान नहीं हूँ
बिखरी सी राहों में पशेमान नहीं हूँ
उखड़ी सी साँसों से साँस भरती है
हाथों को नज़रों से थाम कहती है
जानेजां कर तू परस्तिश हौसलों की
इन्हीं राहों में हम फिर मिल चलेंगे
ज़िंदगी जिंदादिल वापस मुस्करायेगी
अपने होने का यूँ एहसास कराएगी
लरज़ते कदमों से ही तू चल तो सही
कह रही 'निवी' मंज़िल मिल जाएगी
.... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'
बिखरी सी राहों में पशेमान नहीं हूँ
उखड़ी सी साँसों से साँस भरती है
हाथों को नज़रों से थाम कहती है
जानेजां कर तू परस्तिश हौसलों की
इन्हीं राहों में हम फिर मिल चलेंगे
ज़िंदगी जिंदादिल वापस मुस्करायेगी
अपने होने का यूँ एहसास कराएगी
लरज़ते कदमों से ही तू चल तो सही
कह रही 'निवी' मंज़िल मिल जाएगी
.... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'
सुन्दर कविता
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
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