शनिवार, 13 सितंबर 2014

सिरहाना मिल जाये .....



ये मन को भिगोती 
यादों की रिमझिम फुहारे 
इनके धुंधलके से झाँकती 
तुम्हारी यादों की किरण 
अलकों का हिण्डोला सजा 
सुरीले से लम्हों की पींगे 
उनींदी सी पलकों तले 
इन्द्रधनुषी नींद की ओस में 
सो जाना चाहे ....
ब़स सिरहाना मिल जाये 
तुम्हारे हाथों की लकीरों का ..... निवेदिता 

5 टिप्‍पणियां:

  1. अपने हाथों की लकीरों में बसा ले मुझको या फिर सिरहाना हो जो तेरी बाहों का अंगारों पे सो जाऊँ मैं...
    अच्छी रचना!

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  2. मर्मस्पर्शी अभिलाषा .... सुन्दर रचना

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  3. भावनाओं का सुन्‍दर संगम ....

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  4. बस सिरहाना मिल जाये ...तुम्हारी हाथों की लकीरों का .... बहुत सुन्दर लिखा , वाह !

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