चंद साँसों का था ताना - बाना
रंग धागों का बेरंग हो गया
ओढ कर हर एहसास को
खामोशी का पैरहन हो गया
अंधियारा सा इक लम्हा बढ़ा
खामोश नज़र छलक गयी
तस्वीर बनी थी धुंधली सी
न जाने कहाँ खो गयी
शाख से कैसे छूटा पुष्प
श्रृंगार कैसे बिखर गया
मधुमास को जीवंत सा
वनवास मिल गया
खिलखिलाते मुस्कराते घर में
कैसे गूंगा एक कोना रह गया
रौशनी बरसाते चिराग के
दामन में अन्धेरा रम गया
दामन में अन्धेरा रम गया
जीवन का छलिया चक्र तो
बस एक की आँखों में
न जागने वाली नींद तो दूजे को
बेबसी की रातों का दंश दे गया …… निवेदिता
खिलखिलाते मुस्कराते घर में
जवाब देंहटाएंकैसे गूंगा एक कोना रह गया
रौशनी बरसाते चिराग के
दामन में अन्धेरा रम गया ------------- कुछ भाव मन को मोह लेते हैं ... भावभीनी रचना..
चंद साँसों का था ताना - बाना
जवाब देंहटाएंरंग धागों का बेरंग हो गया
ओढ कर हर एहसास को
खामोशी का पैरहन हो गया
बहुत ही सुंदर रचना ! हर शब्द हर पंक्ति हृदयस्पर्शी !
जिंदगी के इस ताने बाने को सहज जीना ही सार्थकता है ...
जवाब देंहटाएंखामोशी का पैरहन :)
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना !!
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चंद साँसों का था ताना - बाना
रंग धागों का बेरंग हो गया
ओढ कर हर एहसास को
खामोशी का पैरहन हो गया
आऽह…
बहुत मार्मिक !
आदरणीया निवेदिता श्रीवास्तव जी
आपकी रचना खामोशी का पैरहन ...... में अंतर का दर्द मुखर है..
निवेदन है, आपकी लेखनी से हर्ष-आनंद भी मुखरित होता रहे...
:)
शुभ-मंगलकामनाओं सहित...
-राजेन्द्र स्वर्णकार
चंद साँसों का था ताना - बाना
हटाएंरंग धागों का बेरंग हो गया
ओढ कर हर एहसास को
खामोशी का पैरहन हो गया
बहुत खुबसूरत अभिव्यक्ति !
New post ऐ जिंदगी !
राजेन्द्र जी ,अपने मेरी रचना को सराहा ..... धन्यवाद !
हटाएंअपने सुझाव दिया है कि मेरे रचनाओं में हर्ष - आनंद भी मुखरित होना चाहिये ... पर मैं आपकी राय से इत्तेफ़ाक नहीं रखती .... अगर आप मेरे ब्लाग को नियमित रूप से पढें तो आप देखेंगे कि इसमें सिर्फ पीड़ा ही नहीं है अपितु हर्ष ,उत्साह ,व्यंग ,पौराणिक ,सामाजिक इत्यादी सभी संदर्भ भी चित्रित हैं ..... संवेदंशील हूँ अत: पीड़ा चाहे वो किसी की भी हो ,नज़रन्दाज़ नहीं कर पाती ....सादर !
आभार आपका :)
जवाब देंहटाएंबेहतरीन...... हर शब्द एक अलग भाव को समेटे है..... बहुत खूब
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कविता है
जवाब देंहटाएंसच दी... यह पीड़ा जो सहता है वही जनता है...अत्यंत मार्मिक रचना।
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