माना
बदलते वक्त के साथ
कम हो ही जाता है
छोटी चीजों का दिखना
या मान लें
वो चीजें ही हो जाती हैं
बहुत छोटी ....
अँधेरे कोने
कम अँधेरे लगते हैं
तुम्हारी बातों की
यादों के जुगनू
साँसों के धडकने से
चमक जाते हैं
और बस
मन में बसा अन्धेरा
छट सा जाता है
बेरंग से लम्हे
सपनों की फुहार में
इन्द्रधनुष से
रंगों का
चंदोवा तान
काँटों की चुभन
अमलतास सा
सहला - दुलरा
जीने की
अनकही वजह
बन जाते हैं ......
-निवेदिता
क्या कहने -जीने का कुछ तो कारण हो !
जवाब देंहटाएंक्या बात है निवेदिता...
जवाब देंहटाएंगहन लेखन ....!!
जवाब देंहटाएंसुंदर अनुभूति निवेदिता जी ....
आपकी सोच आध्यात्मिक है ...!!
शुभकामनायें ...
चलता है ...
जवाब देंहटाएंbahut sundar prastuti
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति रविवारीय चर्चा मंच पर ।।
जवाब देंहटाएंआभार आपका !
हटाएंबहुत अच्छे | क्या कविता लिखी आपने | शानदार | आभार |
जवाब देंहटाएंTamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
भावपूर्ण रचना ... अनकही वजह बने रहें पर इंद्र्धानुष तो खिलेगा ...
जवाब देंहटाएंजीवन में ऐसे पलों की बहुत जरूरत होती है ... जीने की वजह मिलती रहे ...
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार भावपूर्ण उम्दा प्रस्तुति,,,
जवाब देंहटाएंrecent post: बसंती रंग छा गया
waah bahut khub
जवाब देंहटाएंजीवन को रुचिकर बनाने के लिये ज़रूरी है !
जवाब देंहटाएंक्या खूब कहा आपने या शब्द दिए है
जवाब देंहटाएंआपकी उम्दा प्रस्तुती
मेरी नई रचना
प्रेमविरह
एक स्वतंत्र स्त्री बनने मैं इतनी देर क्यूँ
मधुर कारण बने रहें, जीवन रमा रहे।
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