झरोख़ा

"आंखों" के झरोखों से बाहर की दुनिया और "मन" के झरोखे से अपने अंदर की दुनिया देखती हूँ। बस और कुछ नहीं ।

मंगलवार, 24 अगस्त 2021

मेरी खामोश सी खामोशी !

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सोचती हूँ मौन रहूँ  शायद मेरे शब्दों से  कहीं अधिक बोलती है  मेरी खामोश सी खामोशी ! ये सब  शायद कुछ ऐसा ही है  जैसे गुलाब की सुगंध  फूल में ...
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निवेदिता श्रीवास्तव
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