झरोख़ा

"आंखों" के झरोखों से बाहर की दुनिया और "मन" के झरोखे से अपने अंदर की दुनिया देखती हूँ। बस और कुछ नहीं ।

शुक्रवार, 16 जनवरी 2015

तुम.......मैं...........

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तुम मेरा दक्षिण पथ बनो मैं  बनूँ  पूर्व दिशा तुम्हारी तुम पर हो अवसान मेरा मै बनूँ सूर्य किरण तुम्हारी तुम तक जा कर श्वास थमे मेरी...
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निवेदिता श्रीवास्तव
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