झरोख़ा

"आंखों" के झरोखों से बाहर की दुनिया और "मन" के झरोखे से अपने अंदर की दुनिया देखती हूँ। बस और कुछ नहीं ।

गुरुवार, 26 दिसंबर 2013

मैंने कहा न बस यूँ ही ....

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धुंध  आजकल कुछ ज्यादा ही , राह रोक रही है निगाहों की  अकसर  बहुत सी चीजें होती हैं पर  अनजानी अनदेखी ही रह जाती हैं  मैं हूँ वही...
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निवेदिता श्रीवास्तव
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