धुंध
आजकल कुछ ज्यादा ही ,
राह रोक रही है निगाहों की
अकसर
बहुत सी चीजें होती हैं पर
अनजानी अनदेखी ही रह जाती हैं
मैं हूँ वहीं
पर तुम देख नहीं पा रहे हो
शायद चाहत ही नहीं देख पाने की
धूप
जब प्रखर होती कसूरवार बन जाती
आँखे पलको की अंकवार से बाहर आती नहीं
न रहूँगी मैं
तुम्हारी आँखों की चमक बढ़ जायेगी
अँधेरे की रौशनी कुछ अधिक ही तीखी होती है ....... निवेदिता
बहुत सुंदर ....
जवाब देंहटाएंधुंध और धूप ! दो आयाम !
जवाब देंहटाएं"जब प्रखर होती कसूरवार बन जाती "........ वाह क्या उपमान है
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर निवेदिता
खुबसूरत अभिवयक्ति.....
जवाब देंहटाएंधूप
जवाब देंहटाएंजब प्रखर होती कसूरवार बन जाती
आँखे पलको की अंकवार से बाहर आती नहीं
बहुत सुन्दर!!
सस्नेह
अनु
आपकी इस ब्लॉग-प्रस्तुति को हिंदी ब्लॉगजगत की सर्वश्रेष्ठ कड़ियाँ (26 दिसंबर, 2013) में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,,सादर …. आभार।।
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अरे वाह ..... आभार :)
हटाएंखुबसूरत अभिवयक्ति.....
जवाब देंहटाएंजब प्रखर होती कसूरवार बन जाती
जवाब देंहटाएंआँखे पलको की अंकवार से बाहर आती नहीं
बहुत सुन्दर!!
धुंध
जवाब देंहटाएंआजकल कुछ ज्यादा ही ,
राह रोक रही है निगाहों की
***
सच है...!
बहुत ही ख़ूबसूरत बिम्ब और उतनी ही ख़ूबसूरत पेण्टिंग.. मेरा मतलब शब्दचित्र भावनाओं का!!
जवाब देंहटाएंक्या बात वाह! अति सुन्दर
जवाब देंहटाएंतीन संजीदा एहसास
धुंध और धूप के बिम्ब से सजे दो आयाम ...
जवाब देंहटाएंअपनी बात सहज ही रखते हुए ... नव वर्ष की मंगल कामनाएं ...
अनुपम भाव संयोजन से सजी बहुत ही बढ़िया भावपूर्ण अभिव्यक्ति ...:-) नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें दी ...:-)
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया और भावपूर्ण...आप को मेरी ओर से नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं...
जवाब देंहटाएंनयी पोस्ट@एक प्यार भरा नग़मा:-तुमसे कोई गिला नहीं है