झरोख़ा

"आंखों" के झरोखों से बाहर की दुनिया और "मन" के झरोखे से अपने अंदर की दुनिया देखती हूँ। बस और कुछ नहीं ।

शनिवार, 25 फ़रवरी 2012

सलामती क़ी चाहत

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कुछ शब्द कुछ भाव अक्सर आ-आ कर कानों में सरगोशियाँ सी कर यादों को वादों को थपथपा कर सहला जाते हैं कभी दिल कभी दिमाग कहीं वादें ...
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निवेदिता श्रीवास्तव
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