शनिवार, 25 फ़रवरी 2012

सलामती क़ी चाहत


कुछ शब्द
कुछ भाव
अक्सर
आ-आ कर
कानों में
सरगोशियाँ
सी कर
यादों को
वादों को
थपथपा कर
सहला जाते हैं
कभी दिल
कभी दिमाग
कहीं वादें
कहीं इरादे
कभी यादों में
समेट कर
सहेजे रखने का
डगमगाता दावा
कहीं यादों संग
चाहत बनाये रखने का
पुरजोर इज़हार
क्यों ?????
याद तो
दुश्मन ने भी
किया ही होगा
सलामती क़ी
चाहत तो
बस एक तुमने ही की होगी ........
                            -निवेदिता

23 टिप्‍पणियां:

  1. याद तो
    दुश्मन ने भी
    किया ही होगा
    सलामती क़ी
    चाहत तो
    बस एक तुमने ही की होगी .......
    बहुत ही बढि़या।

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  2. बहुत ही सुंदर भाव संयोजन...सच ही तो हैं याद तो दुश्मन भी किया ही करते हैं मगर सलामती की चाहत तो किसी-किसी की होती है सार्थक रचना ...

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  3. जो अपने होते है वही सलामती चाहते है,..
    बहुत,बेहतरीन अच्छी प्रस्तुति,सुंदर भाव की रचना के लिए बधाई,.....

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  4. मै समर्थक बन गया हूँ आप भी बने मुझे खुशी होगी,.....

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  5. याद तो
    दुश्मन ने भी
    किया ही होगा
    सलामती क़ी
    चाहत तो
    बस एक तुमने ही की होगी ........
    -

    बहुत अच्छा लगा आपकी प्रस्तुति पढकर.
    आपकी उनके प्रति सकारात्मक सोच दिल को भा गई.

    समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईएगा,निवेदिता जी.

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  6. बहूत हि सुंदर रचना..
    बेहतरीन भाव संयोजन:-)

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  7. भावों से नाजुक शब्‍द को बहुत ही सहजता से रचना में रच दिया आपने.........

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  8. कविता का भाव बहुत ही अच्छा लगा । मेरे पोस्ट "भगवती चरण वर्मा" पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।

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  9. बहुत बढ़िया...
    सुन्दर भाव......

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  10. याद तो
    दुश्मन ने भी
    किया ही होगा
    सलामती क़ी
    चाहत तो
    बस एक तुमने ही की होगी .....

    बहुत सुन्दर पंक्तियाँ ! मन से निकली एक भावपूर्ण रचना !

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  11. हम भी कर रहे हैं सलामती की चाहत’दोनों के लिये’:)

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  12. बहुत सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति सलामती पर...

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