वो सर्द होती गुलाबी सी रंगत
चाहत उलझी हुई उंगलियों की
उन झुकती सी नम पलकों की
सपनीली सी गुनगुनी है कशिश
रेशम सी उलझती है अलकों से
ओस सी बरसती हुई चन्द बूंदे
सुनो ! ये कौन सी है ऋतु अब आयी
उष्ण हो जाती इन सिहरती रातों की
सर्द होते जाते हैं गुलाबी से अहसास
हमसाया हैं तुम्हारे तप्त जज़्बातों के ! #निवी
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (10-11-2021) को चर्चा मंच "छठी मइया-कुटुंब का मंगल करिये" (चर्चा अंक-4244) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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छठी मइया पर्व कीहार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुंदर सृजन
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