#जय_माँ_शारदे 🙏
लघुकथा : तीन घर
सात वर्ष का सुमेर खेल के मैदान में खड़ा हो कर भी जैसे वहाँ नहीं था । बहुत देर से उसका अनमनापन देख रहे सौम्य सर उसके पास आ गए ,"चैम्प ! तुम्हारा आज खेलने में मन नहीं लग रहा है क्या ? कोई बात नहीं आओ हम बैडमिन्टन खेलते हैं ... खेलोगे न मेरे साथ !"
जब से सुमेर हॉस्टल में रहने आया ,तभी से उसकी खोई - खोई सी मासूमियत ने हॉस्टल - वॉर्डन सौम्य को उसकी विशेष देखभाल के लिए एक तरह से विवश कर दिया था ।
बहुत प्रयास करने पर भी ,सुमेर ने बैडमिंटन कोर्ट तक का रास्ता सन्नाटा जगाती सी चुप्पी में ही पार किया ,तब सौम्य घबरा गया और रास्ते की बेंच पर ही उसके साथ बैठ गया और फिर से एक अनथक सा प्रयास शुरू किया ।
सुमेर भी जैसे अपने अकेलेपन से टूटता जा रहा था । उसने सौम्य से नज़रें चुराते हुए पूछा ,"माता पिता अपने तलाक़ से पहले बच्चों से पूछना या उनको समझना जरूरी क्यों नहीं समझते ? "
सौम्य का दिल दहल गया और उसने सुमेर को बाँहों के सुरक्षित दायरे में समेट लिया । सुमेर की पलकें नम होती चली गईं ,"सर ! तलाक के बाद एक घर अक्सर तीन घरों में बँट जाता है ... दो मम्मी - पापा के और तीसरा ऐसा ही कोई हॉस्टल !" #निवी
कटु सत्य।
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