गुरुवार, 25 फ़रवरी 2021

रहूँ तेरे साथ !!!



💐💐💐💐
बावरा मन पूछे कान्हा से
किस रूप रहूँ तेरे साथ !

मोर पंख बना ले कृष्णा
मुकुट संग सजूँ तेरे माथ ,
वैजयंती में सुगन्धि बन बसूँ
हॄद तेरे रच जाऊँ मेरे नाथ !

आलता बन पड़ जाऊँ पाँव
कंटक सारे चुन लूँ दीनानाथ ,
पीताम्बर बन अंग सज जाऊँ
रखना संग मुझे मेरे जगन्नाथ !

चल मुरली बना ले मनमोहना
सज्ज रहूँ तेरी कटि में या हाथ ,
बोली तीखी बोले न कभी मुझे
अधरों पर अपने सजा श्रीनाथ !

सुदर्शन चक्र बन कभी न पाऊँ
कैसे करूँगी किसी को अनाथ ,
बता न छलिया क्या बनाएगा
अन्तस ने कर लिया प्रमाथ !

बावरा मन बोले कान्हा से
रहना मुझको तेरे ही साथ ,
जिस विध चाहे रख मुझको
सदा रखना तू 'निवी' को साथ !
.... निवेदिता श्रीवास्तव '#निवी'

प्रमाथ : मन्थन

बुधवार, 24 फ़रवरी 2021

एक ख़त चाय के नाम 😊


#एक_ख़त_चाय_के_नाम 😊


ऐ मेरी चाय !☕

कैसी हो ? मुझको याद कर रही हो न ! मैं भी तुमको बहुत मिस कर रही हूँ । आज भी याद करती हूँ वो सारे लम्हे जिनमें तुम रूप बदल - बदल कर मुझ तक आती थी । कभी काँच के लुभावने छोटे कप - सॉसर में ,तो कभी स्टील के मग में ... किसी में कोई कार्टून बना होता तो किसी में फूल पत्तियाँ रहतीं । मुझे तो आज भी वो कप बहुत याद आता है जिसमें जैसे - जैसे गर्मागर्म सी तुम भरती जाती तो उस की सतह पर मेरा नाम और अक्स बनता जाता था ।


स्वाद ... उफ़्फ़ ... ज़िन्दगी के कितने अलग - अलग स्वाद से भरी मिलती तुम मुझसे ... कभी अदरख तो कभी लौंग - इलायची में रची - बसी ,तो कभी ग्रीन टी के अवगुंठन में स्ट्रॉबेरी, रसबेरी ,नींबू वगैरा ... और हाँ ! कभी गुस्से में भरी ब्लैक टी भी 😅 सच कितने रंग ,कितने रूप हैं तुम्हारे ।


आज भी जब ब्लैक कॉफी पीती हूँ न ,तो पहला घूँट तुमको याद कर के ही लेती हूँ और उसकी कड़वाहट को कण्ठ में उतार लेती हूँ ❣️


सुनो तो ... जरा अपना कान इधर लाना ... ये जो मुझ में बढ़ी हुई मिठास ( शुगर ) है न ,जरा कम हो जाये दवाओं से तब मिलती हूँ तुमसे ... रोज न भी मिल सकूंगी तो क्या हुआ ,कभी - कभार तो मिल ही जाऊँगी ... तब तक तुम बस यूँ ही मेरी यादों में बसी रहना 😊


पहचान तो गयी ही होगी मुझको ... 

तुम्हारी #मैं  ... #निवी

सोमवार, 22 फ़रवरी 2021

अवकाश प्राप्ति ( रिटायरमेंट )



जीवन की प्रथम श्वांस से ही हमारे सामने आनेवाले समय के लिये एक उद्देश्य मिल जाता है और हम यथासामर्थ्य उसको प्राप्त करने का प्रयास करते हैं । उंगलियों में कलम / पेंसिल पकड़ते ही अच्छी शिक्षा और उसमें भी अव्वल रहने का लक्ष्य साधने की बात दिमाग में भर दी जाती है । शिक्षा में पकड़ बनाते ही नया लक्ष्य सम्मुख आ जाता कि कोई अच्छी सी नौकरी / व्यवसाय हासिल करना है ... उसके बाद क्रमशः विवाह ,बच्चे ,उन बच्चों को व्यवस्थित करना इत्यादि ।

इतना सब करते हुए समय आ जाता है अवकाश प्राप्ति ( रिटायरमेंट ) का ... अब सबसे बड़ा प्रश्न कि कोई प्रश्न / लक्ष्य बचा और बना ही नहीं ... अब क्या करें ? पहले के संयुक्त परिवार में तो सबके साथ यह समय टीसता नहीं था ,परन्तु अब एकल परिवार का अकेलापन वीरानी ला विवश सा करता है प्रत्येक आती - जाती साँसों को गिनने के लिये ।

अक्सर तब एक ही प्रश्न ज़ेहन में दस्तक देता है कि अवकाश प्राप्ति का अर्थ जीवन की दूसरी जीवन्त पारी का प्रारंभ होता है या प्रतीक्षा जीवन के अंत की !

अवकाश एक ऐसा लम्हा है जिसकी हम बहुत चाहत रखते हैं ,परन्तु अवकाश प्राप्ति के बारे में तो सोचते ही नहीं है ,जबकि हम को सबसे अधिक तैयारी और सकारात्मकता की आवश्यकता इस समय ही चाहिए ।

अमूमन अवकाश प्राप्ति के बाद का समय निष्क्रियता को ही समर्पित मान लिया जाता है ,जिसको रूखे शब्दों में कहूँ तो चलती हुई साँसों के रुक जाने का ,अपनी मृत्यु की प्रतीक्षा बन जाती है ,जो सर्वथा गलत्त है ।

मुझको तो अवकाश प्राप्ति नये उन्मुक्त जीवन की शुरुआत सी लगती है । इस समय के पहले हम सिर्फ चुनौतियों का सामना करने ,स्वयं को प्रमाणित करने में ही व्यस्त रहते हैं और इन सब के बीच हम अपने शौक पूरे करना ,खुल के जीना भूले रहते हैं ,जो पहले बहुत जरूरी रहता है ।

यह भी सम्भव हो सकता है कि अवकाश प्राप्ति के बाद शायद हम शारीरिक रूप से कुछ परेशानियों से घिर गए हों ,तब भी यदि नाचने की इच्छा कभी कहीं दबी रह गयी हो तो बेशक हम मुक्त पवन सा लहरा न पाएं परन्तु थिरकने का प्रयास जरूर करना चाहिए । हो सकता है कि शास्त्रीय गायन की स्वर लहरियों को हमारी उखड़ती हुई साँसें न सम्हाल पाएं ,तब भी रैप की तरह निकली अपनी आवाज़ को गुनगुनाना मान कर चन्द साँसें सुकून की अपने फेफड़ों को मुस्कुराते हुए देना चाहिए । अपने जीवन की हर पेन्डिंग हो चुकी ख़्वाहिश को पूरा करने का प्रयास अवश्य करना चाहिए । और हाँ ! यदि आवश्यक न हो तो नौकरी नहीं करनी चाहिए ,बल्कि स्वेच्छा से समाज के प्रति कुछ सेवा जरूर करनी चाहिए ।

मैं अपनी बातों / विचारों को समेटते हुए सिर्फ़ इतना ही कहूंगी कि सबके प्रति जिम्मेदारियों को पूरा करने की थाली सजाने के बाद अब अपनी खुशियों की थाल परोसने में न तो संकोच करें और न ही कंजूसी । ऐसा करने से हमारे न रहने पर हमारा परिचय सिर्फ़ यही होगा कि ... हाँ ! यहाँ रहती थी मुस्कराती सकारात्मकता 😊 #निवी

रविवार, 14 फ़रवरी 2021

गीतिका : गीत गाते हुए ...

 गीतिका

चांदनी खिल गयी मुस्कुराते हुए

बादलों ने     कहा गीत गाते हुए।।


इस ज़माने ने देखा मुझे आज फिर

इक नई सी नज़र से बुलाते हुए।


दो कदम आसरा बन चले जा रहे

और मंज़िल मिली सर झुकाते हुए।


जब सपन रंग आंखों में भरने लगे

फिर नज़र मिल गयी दिल लुभाते हुए।


अब हृदय में मेरे तुम जो आ जाओ तो

ये #निवी जी उठे सर उठाते हुए।

   ... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'

गुरुवार, 11 फ़रवरी 2021

लघुकथा ( संवाद शैली ) : कृष्ण मन

 सुनो तुम हर कदम पर मुझको परीक्षक की दृष्टि से ही क्यों देखते रहते हो ?


नहीं ... ऐसा तो नहीं है ।

अच्छा ! उन तमाम लम्हों की याद दिलाऊँ क्या ?

नहीं ... नहीं ... जाने भी दो न ... उन लम्हों को याद कर ,इस उजली चाँदनी पर अमावस की बदली क्यों ओढ़ना ... मान जाओ न ।

चलो छोड़ो क्योंकि अब उन लम्हों की मिठास को तो स्वयं ईश्वर भी नहीं ला पाएंगे ... परन्तु सिर्फ़ एक बार कारण तो बता ही दो न ,जिससे मेरा मन कुछ तो शान्त हो जाये।

इसका कारण हमारा यह सामाजिक ढाँचा है ,इसके अतिरिक्त और कुछ नहीं ।

ये क्या बात हुई ... यह तो अपने ही किये गए कार्यों की जिम्मेदारी से पलायन हुआ न ।

मेरा विश्वास करो ,यही सच है । मैं पुरूष हूँ न ,बस इसीलिये तुम्हारे किये गए प्रत्येक कार्य को मैंने कभी अपनी तो कभी दूसरों की निगाहों से ही देखा ।

और मेरी निगाहें या मेरा नज़रिया ...

वो तो कभी सोचा ही नहीं । तुम या तुम्हारा अलग व्यक्तित्व है ही कहाँ ? तुम तो मुझमें ही समाहित हो और मुझे तो आदर्शों के प्रतिमान रचने है न !

हो सकता है कि तुम अपनी जगह सही हो ,परन्तु गलत मैं भी नहीं । तुम तो मन में भी राम की कठोरता सम्हाले रहे,जबकि मैं तुम्हारे मन में कान्हा को तलाशती रही ।

क्या मतलब है तुम्हारा ... क्या मैंने तुम्हारी अस्मिता का मान नहीं रखा ?

बेशक़ रखा होगा ,परन्तु वह भी अपने ही नज़रिए से । वैसे भी तुम्हारा काम तो मेरी प्रतिमा से भी चल जाएगा ,परन्तु मेरा नहीं ।

क्या कह रही हो ?

मैं उस कृष्ण मन को चाहती हूँ जो एक धागे का मान रखने के लिये ,वस्त्रों का ढ़ेर लगा दे । अपने साथी के मन में मैं राधा और द्रौपदी वाला नेह भरा सम्मान चाहती हूँ ।
                        ... निवेदिता श्रीवास्तव #निवी

सोमवार, 8 फ़रवरी 2021

लघुकथा : प्रेम कनिष्ठावाला ( वैलेंटाइन डे )

 

प्रेम कनिष्ठावाला ( वैलेंटाइन डे )
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सुनो !

हूँ ...

बहुत सोचा पर एक बात समझ ही नहीं आ रही😞

क्या ?

अधिकतर लोगों को देखा है कि वो तीन उंगलियों में ,यहाँ तक कि अंगूठे में भी अंगूठी पहन लेते हैं ,परन्तु सबसे छोटी उंगली को खाली ही छोड़ देते हैं ।

हा ... हा ... सही कह रहे हो 😅

अरे ! हँसती जा रही हो ,कारण भी तो बताओ ।

हा ... हा ... अरे सबसे छोटी होती है न किसीका ध्यान ही नहीं जायेगा इसीलिये ...

मजाक मत करो ,सच - सच बताओ न ,तुम क्या सोच रही हो ?

अच्छा ये बताओ ,हम कहीं जाते हैं तो तुम मेरी छोटी उंगली ,मतलब कनिष्ठा क्यों पकड़ लेते हो ?

अरे ! वो तो किसी का ध्यान न जाये कि हमने एक दूजे को थाम रखा है ,बस इसीलिये ...

अब समझो कि तर्जनी पकड़ाते ही इसलिये हैं जिससे किसी को सहारे का आभास हो  ...

हद्द हो यार तुम ,मैं बात करूंगा आम तुम बोलोगी इमली ...

सुनो तो ... कनिष्ठा प्रतीक है प्रेम का ...

प्रेम का ?

हाँ ! हम जिसके प्रेम में होते हैं उसकी हर छोटी से छोटी बात भी महत्व रखती है ...

वो तो ठीक है परन्तु कनिष्ठा को आभूषण विहीन क्यों रखना ?

क्योंकि जब दो प्रेमी अपने होने का एहसास करते हैं तब वो कनिष्ठा पकड़ते हैं ।  रस्सी का सबसे छोटा सिरा पकड़ लो तो दूरी खुद नहीं बचती । पकड़ में मजबूती नहीं होती पर विश्वास होता है । अब इस छुवन में आभूषण बैरी का क्या काम ... हा ... हा ...

तुम भी न बस तुम हो 💖💖
                ... निवेदिता श्रीवास्तव #निवी