रविवार, 21 जून 2020

पापा ....

संस्मरण

यादों में तैर रही है एक बच्ची जो सबकी बहुत लाड़ली ,दुलारी है कई भाइयों ( तब कजन्स नहीं होते थे न ,सिर्फ भाई - बहन ही होते थे 💖 ) की छोटी सी चंचल बहन । बहन ऐसी कि हर समय उसके बोल चहचहाते रहते और क़दम थिरकते ही रहते थे ,चाहे वो सीढ़ियों पर चढ़ रही हो या उतर रही हो ... जानती थी न कि उसको संभालने वाले हाथ गिरने नहीं देंगे ।

एक दिन अपने पापा के साथ स्टेशनरी की दुकान पर किताबें देखती हुई वह अनायास ही बोल पड़ी थी ,"पापा ! यह किताब तो किसी को मिली ही नहीं थी ,अब सिर्फ मेरे पास ही होगी । कितना मजा आयेगा ।"

पापा ने उसको दुलराते हुए कहा था ,"तुम्हारे पास कुछ होना बहुत अच्छी बात है वह भी तब ,जब वह ज्ञान और अच्छा व्यवहार हो ,सामान नहीं । अगर तुम और बच्चों को भी यह किताब दोगी तब सब मिलकर पढ़ेंगे । कितना मजा आएगा !"

"पर पापा ! मुझे क्यों मजा आयेगा ", वह फिर ठुनक पड़ी ।

"सबसे पहली बात तो यही कि अगर किताब मिलेगी ही नहीं ,तब हो सकता है टीचर दीदी उस किताब को कोर्स से ही हटा दें ... ",पापा ने समझाया ।

पापा को लगा कि वह उसकी बात समझ रही है ,तब  उन्होंने अपनी बात आगे बढ़ाई ," अपने पास की चीजों और ज्ञान को बाँटना बहुत जरूरी है । अगर अपने आसपास के लोगों को भी प्यार करती हुई सिखाती चलोगी ,तब तुम्हारे साथ के सभी लोग उस ज्ञान को समझने लगेंगे और तुमको कभी भी अकेलापन नहीं लगेगा । "

"हाँ पापा ! आप कह तो सही रहे हैं । पर ऐसा करने से मैं हमेशा फर्स्ट भी तो नहीं आ पाऊँगी ,"फिर एक सवाल पूछ बैठी थी वह ।

पापा हँस पड़े थे ,"ऐसा करने से तुम यहाँ ही नहीं कहीं भी प्रतियोगिता से घबराओगी नहीं । और सब को सिखाते हुए तुम्हारा रिविज़न भी तो साथ - साथ ही होता रहेगा । "

उस बच्ची ने इस बात को अपने अंतर्मन में बसा लिया था ।

जानते हैं वह बच्ची और कोई नहीं मैं ही थी 😊 अपने पापा की इसी सीख की वजह से आज भी जो भी और जितना भी आता है सब के साथ बाँटती और सबका स्नेह बटोरती रहती है ।

कभी कहा नहीं था ,पर आज कह ही देती हूँ ... पापा आप का होना एक विशाल दरख़्त का साया रहा है हमेशा  । उस ऊपरवाले का बहुत - बहुत शुक्रिया कि उसने मुझे आपकी बेटी बना कर भेजा 🙏
                              ... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'

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