उधार बाकी है ...
ज़िन्दगी थोड़ी मोहलत मुझे दे दे
इस ज़िन्दगी का कुछ उधार बाकी है
नयन नम हो गए ,स्वप्न भी झर गये
नयनों में सपनों का उधार बाकी है
साँसें भी थक चली ,पग भी थम गये
मंजिल का उधार अभी बाकी है
*तन* तो मिट्टी हुआ भस्म यूँ बन गया
एक पेड़ का उधार अभी बाकी है
... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'
ज़िन्दगी थोड़ी मोहलत मुझे दे दे
इस ज़िन्दगी का कुछ उधार बाकी है
नयन नम हो गए ,स्वप्न भी झर गये
नयनों में सपनों का उधार बाकी है
साँसें भी थक चली ,पग भी थम गये
मंजिल का उधार अभी बाकी है
*तन* तो मिट्टी हुआ भस्म यूँ बन गया
एक पेड़ का उधार अभी बाकी है
... निवेदिता श्रीवास्तव 'निवी'
बहुत सही कहा, पेडों का उधार तो मनुष्य नहीं चुका पायेगा.
जवाब देंहटाएंरामराम
बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 20.02.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3617 में दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
मनुष्य पैदा होने के बाद अंत समय तक बहुत कुछ बाकी रहता है
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
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जवाब देंहटाएं*तन* तो मिट्टी हुआ भस्म यूँ बन गया
एक पेड़ का उधार अभी बाकी है
बहुत ही सुंदर ,तन के मिट्टी होने के बाद भी एक पेड़ का उधार तो बाकी ही रह जाता हैं ,बेहद गहरे भाव ,सादर नमन आपको