लघुकथा : मोक्ष
दोस्तों के झुण्ड में अनिकेत गुमसुम सा बैठा था ।अपने मे ही खोया सा ,जैसे खुद से ही बातें कर रहा हो । उसका मानसिक द्वंद भी यही था कि बचपन से देखी हुई परम्पराओं के अनुसार पितृ पूजन करे या अपनी आत्मा की सुने और पापा की विचारधारा के अनुसार नयी परिपाटी शुरू करे ।
मन में एक संशय भी था कि परिपाटी के विरुद्ध जाना कहीं माँ को पीड़ा न दे जाये । पापा के शरीर के शान्त होने के बाद से तो खुद को जैसे एक गुंजल में बाँध लिया है । किसी भी बात को मन से न स्वीकार करते हुए भी चुप ही रह जाती हैं । सच कहूँ तो उनकी ये चुप्पी बहुत कचोटती है ।
मन ही मन खुद को बहुत मजबूत कर के अनिकेत उठा कि ऐसे बैठने और सोचते रहने से तो वो किसी समाधान पर तो नहीं ही पहुँच पायेगा । वह माँ के पास ही बैठ गया ।
माँ ने उसकी तरफ देखा और शान्त आवाज में बोलीं ,"बेटा तुम परेशान मत होओ । पितृ पक्ष की पूजा का विधान मैंने सोच लिया है । एक बार बस हमलोग ये देख लें कि ऐसे में कितने पैसे लगेंगे ।"
अनिकेत एकदम से बोल उठा ,"माँ ! जितना और जैसा आप कहिएगा ,सब हो जाएगा । "
माँ बोलने लगीं ,"तुम्हारे पापा ने कभी भी इन रिवाजों को दिल से नहीं स्वीकार किया था । हम उनके निमित्त जो भी करेंगे वह उनके ही विचारों के अनुसार करेंगे । मासिक श्राद्ध में लगाये जाने वाली राशि से आर्थिक रूप से कमजोर एक बच्चे की हर महीने की ट्यूशन फीस हम स्कूल में जमा करेंगे । मृतक भोज में भी जो धन हम लगाते ,उसको स्कूल के बच्चों के दुपहर के भोजन के लिये जमा कर देंगे ।"
माँ को दृढ़मना हो कर इतना स्पष्ट निर्णय लेते देख ,अनिकेत ने अपने अंदर के बिखराव को समेटते हुए कहा ," माँ ! पापा की विचारधारा के अनुरूप ,आपने बिल्कुल सही निर्णय लिया । एक बात मेरे मन में भी आई है कि पण्डित जी पुरखों को गया बैठाने के लिये कह रहे थे । अगर हम उसकी जगह आर्थिक रूप से निर्बल किसी लड़की की शादी करवायें तो कैसा रहेगा ! "
माँ भरी आँखों से बेटे को देखते हुए बोलीं ,"हाँ बेटे पुरखों को मोक्ष दिलवाने के लिये वो दुआयें ज्यादा प्रभावी होंगी जिनसे किसी की नई जिंदगी शुरू हो ।"
.... निवेदिता श्रीवास्तव "निवी"
दोस्तों के झुण्ड में अनिकेत गुमसुम सा बैठा था ।अपने मे ही खोया सा ,जैसे खुद से ही बातें कर रहा हो । उसका मानसिक द्वंद भी यही था कि बचपन से देखी हुई परम्पराओं के अनुसार पितृ पूजन करे या अपनी आत्मा की सुने और पापा की विचारधारा के अनुसार नयी परिपाटी शुरू करे ।
मन में एक संशय भी था कि परिपाटी के विरुद्ध जाना कहीं माँ को पीड़ा न दे जाये । पापा के शरीर के शान्त होने के बाद से तो खुद को जैसे एक गुंजल में बाँध लिया है । किसी भी बात को मन से न स्वीकार करते हुए भी चुप ही रह जाती हैं । सच कहूँ तो उनकी ये चुप्पी बहुत कचोटती है ।
मन ही मन खुद को बहुत मजबूत कर के अनिकेत उठा कि ऐसे बैठने और सोचते रहने से तो वो किसी समाधान पर तो नहीं ही पहुँच पायेगा । वह माँ के पास ही बैठ गया ।
माँ ने उसकी तरफ देखा और शान्त आवाज में बोलीं ,"बेटा तुम परेशान मत होओ । पितृ पक्ष की पूजा का विधान मैंने सोच लिया है । एक बार बस हमलोग ये देख लें कि ऐसे में कितने पैसे लगेंगे ।"
अनिकेत एकदम से बोल उठा ,"माँ ! जितना और जैसा आप कहिएगा ,सब हो जाएगा । "
माँ बोलने लगीं ,"तुम्हारे पापा ने कभी भी इन रिवाजों को दिल से नहीं स्वीकार किया था । हम उनके निमित्त जो भी करेंगे वह उनके ही विचारों के अनुसार करेंगे । मासिक श्राद्ध में लगाये जाने वाली राशि से आर्थिक रूप से कमजोर एक बच्चे की हर महीने की ट्यूशन फीस हम स्कूल में जमा करेंगे । मृतक भोज में भी जो धन हम लगाते ,उसको स्कूल के बच्चों के दुपहर के भोजन के लिये जमा कर देंगे ।"
माँ को दृढ़मना हो कर इतना स्पष्ट निर्णय लेते देख ,अनिकेत ने अपने अंदर के बिखराव को समेटते हुए कहा ," माँ ! पापा की विचारधारा के अनुरूप ,आपने बिल्कुल सही निर्णय लिया । एक बात मेरे मन में भी आई है कि पण्डित जी पुरखों को गया बैठाने के लिये कह रहे थे । अगर हम उसकी जगह आर्थिक रूप से निर्बल किसी लड़की की शादी करवायें तो कैसा रहेगा ! "
माँ भरी आँखों से बेटे को देखते हुए बोलीं ,"हाँ बेटे पुरखों को मोक्ष दिलवाने के लिये वो दुआयें ज्यादा प्रभावी होंगी जिनसे किसी की नई जिंदगी शुरू हो ।"
.... निवेदिता श्रीवास्तव "निवी"
bahut khoob
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