अंधियारा जब फैला हो
जुगनू बन तुम आ जाना
रपटीली डगर जीवन की
बन सहारा छा जाना
आँधी के झोंकों में
जीवन पुष्प बिखरता है
माथे चन्द्र - कलश लिए
सुगन्ध बन बस जाना
अंधियारा जब फैला हो
जुगनू बन तुम आ जाना
जन्म जन्मांतर की बात सुनी
आलक्त कदमों साथ चली
सप्तपदी के वचनों में
जीवन की आस पली
बन प्रहरी वादों के
हर साँस में साथ निभा जाना
अंधियारा जब फैला हो
जुगनू बन तुम आ जाना ....... निवेदिता
जुगनू बन तुम आ जाना
रपटीली डगर जीवन की
बन सहारा छा जाना
आँधी के झोंकों में
जीवन पुष्प बिखरता है
माथे चन्द्र - कलश लिए
सुगन्ध बन बस जाना
अंधियारा जब फैला हो
जुगनू बन तुम आ जाना
जन्म जन्मांतर की बात सुनी
आलक्त कदमों साथ चली
सप्तपदी के वचनों में
जीवन की आस पली
बन प्रहरी वादों के
हर साँस में साथ निभा जाना
अंधियारा जब फैला हो
जुगनू बन तुम आ जाना ....... निवेदिता
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (16-09-2019) को "हिन्दी को वनवास" (चर्चा अंक- 3460) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'