लघुकथा : आत्मबल
माँ : "अन्विता रात हो रही है अकेले मत जाओ ... जाना जरूरी हो तो भाई या अपनी किसी सहेली को साथ ले लो ।"
अन्विता : "माँ समस्या चुनाव की नहीं है कि सहेली को साथ लूँ या भाई को । दूषित विचार को वो मेरा भाई नहीं लगेगा और फब्तियाँ सुननी पड़ेगी ... और अगर दोस्त के साथ जाऊँगी तो उनकी जुगुप्सा को एक की जगह दो के मानसिक और शाब्दिक चीरहरण के अवसर मिलेंगे । जब भी अकेली लड़की दिखती है तो सब फब्तियाँ कसते हैं ,पर वही लड़की अगर अकेली किसी दुःशासन के सामने होती है तब वो उनको दिखाई ही नहीं देती ... या कह लूँ कि वो उनके लिये अवसर होती है या फिर अदृश्य ... वैसे भी मैं कराटे क्लास में जा रही हूँ जहाँ जाने के लिये साथ से अधिक जरूरी आत्मबल होता है ।" .... निवेदिता
माँ : "अन्विता रात हो रही है अकेले मत जाओ ... जाना जरूरी हो तो भाई या अपनी किसी सहेली को साथ ले लो ।"
अन्विता : "माँ समस्या चुनाव की नहीं है कि सहेली को साथ लूँ या भाई को । दूषित विचार को वो मेरा भाई नहीं लगेगा और फब्तियाँ सुननी पड़ेगी ... और अगर दोस्त के साथ जाऊँगी तो उनकी जुगुप्सा को एक की जगह दो के मानसिक और शाब्दिक चीरहरण के अवसर मिलेंगे । जब भी अकेली लड़की दिखती है तो सब फब्तियाँ कसते हैं ,पर वही लड़की अगर अकेली किसी दुःशासन के सामने होती है तब वो उनको दिखाई ही नहीं देती ... या कह लूँ कि वो उनके लिये अवसर होती है या फिर अदृश्य ... वैसे भी मैं कराटे क्लास में जा रही हूँ जहाँ जाने के लिये साथ से अधिक जरूरी आत्मबल होता है ।" .... निवेदिता
बहुत सुंदर
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