मनुष्य को इस संसार में लाना तो कठिन है ही ,पर उसको भला आदमी बना पाना उससे कही बहुत ज्यादा कठिन है ... ... निवेदिता
मानव मन अपने मन की बातें छुपाना चाहता है शायद इसके पीछे का मूल कारण ये ही होगा कि शेष व्यक्ति उस बात को अपने मनमाफिक रंग देकर व्याख्या करेंगे और खामोश होता जाता है ...... निवेदिता
भारी सामान नहीं मन होता है .... दो तीन किलो सामान लेकर चलने में ही हाथों में दर्द अनुभव होने लगता है जबकि नौ महीने का गर्भकाल ,जो दिनोदिन शिशु की सृजनात्मक वृद्धि का होता है ,आत्मा तक को हल्कापन अनुभूत कराता है ....... निवेदिता
घड़े सी होना चाहती हूँ
और बाद में ......
बाद में भी मिटटी ..... निवेदिता
मन ( गुरुर ) बड़ा नहीं होना चाहिये
मान ( सम्मान ) बढा होना चाहिये ...... निवेदिता
मननीय तथ्य...
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जवाब देंहटाएं@ मनुष्य को इस संसार में लाना तो कठिन है ही ,पर उसको भला आदमी बना पाना उससे कही बहुत ज्यादा कठिन है | कभी कभी असंभव होता है |
दिनांक 03/10/2017 को...
जवाब देंहटाएंआप की रचना का लिंक होगा...
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी इस चर्चा में सादर आमंत्रित हैं...
आपके इस सुन्दर व सार्थक प्रयास के लिए आपको बहुत-बहुत शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंआभार। ''एकलव्य''
सुन्दर।
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