"आंखों" के झरोखों से बाहर की दुनिया और "मन" के झरोखे से अपने अंदर की दुनिया देखती हूँ। बस और कुछ नहीं ।
मंगलवार, 13 दिसंबर 2016
नींव का पत्थर
एक चुभन सी हुई सोचा अपने नाम की
नामालूम सी अनदेखी ठोकरें खाती इक ईंट खिसका दूँ पर तभी अनायास ही नजरें टिक गयीं इमारत की बुलन्दी पर और ..... कुछ खास नहीं बस मैंने अपने हाथ हटा लिये और नींव का पत्थर बन गयी ..... निवेदिता
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