रविवार, 10 जुलाई 2016

10 / 07 / 16



बात में ही कोई बात होगी 
यूँ न साँसे अटक पाएंगी 
सवाल करती साँसे भी 
एक पल को ही सही 
कहीं अटकी तो कहीं 
भटक भी गईं होंगी 

मुझे देखो न अब क्या करूँ 
बड़ी ही ईमानदार से की थी  
एक कोशिश याद करने की 
कुरआन की वो आयतें 
पर तुम याद आ गये 
और  ....... 
मैं तो बस मर ही मिटी  ..... निवेदिता 

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