10 / 07 / 16
बात में ही कोई बात होगी
यूँ न साँसे अटक पाएंगी
सवाल करती साँसे भी
एक पल को ही सही
कहीं अटकी तो कहीं
भटक भी गईं होंगी
मुझे देखो न अब क्या करूँ
बड़ी ही ईमानदार से की थी
एक कोशिश याद करने की
कुरआन की वो आयतें
पर तुम याद आ गये
और .......
मैं तो बस मर ही मिटी ..... निवेदिता
वो ही खुदा है तो किसी आयत की क्या जरूरत ...
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